________________
१८४
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
रूप में प्रस्तुत करके जगत् को स्वच्छन्दाचार की ओर प्रेरित करते हैं । नीचे हम क्रमशः नास्तिकवादियों के मत की समीक्षा करते हैं
सुति - नास्तिकवादियों का कहना है - ' जगत् शून्य है ।' यानी जगत् का अपना कोई आकार या अस्तित्व नहीं दिखाई देता; इसलिए जगत् शून्य है । परन्तु जगत् शून्य होता तो उसका जो रूप दिखाई दे रहा है, वह नहीं दिखाई देता । इसलिए जगत् प्रत्यक्षप्रमाण से सिद्ध है । नास्तिकवादियों का जगत्-शून्यता का कथन मिथ्या है |
नत्थि जीवो— नास्तिकवादियों का कहना है, कि 'जीव नहीं है यानी आत्मा नहीं है । क्योंकि उसको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है । इन्द्रियों के साथ पदार्थ के सन्निकर्ष से होने वाले ज्ञान को ही हम प्रत्यक्ष प्रमाण मानते हैं । इन्द्रियों से तो आत्मा न कभी जानने आता है, न उसकी कोई आकृति दिखाई देती है; इसलिए आत्मा प्रत्यक्ष से सिद्ध नहीं होती जो वस्तु प्रत्यक्ष से कहीं भी सिद्ध नहीं होती, उसके विषय में अनुमान भी नहीं हो सकता । धुंए और अग्नि का संयोग रसोईघर में प्रत्यक्ष देखने पर ही पर्वत पर धुंए को देख कर अग्नि का अनुमान किया
।
नहीं होती । आगमप्रमाण से भी
जाता है । अतः अनुमानप्रमाण से भी आत्मा सिद्ध आत्मा सिद्ध नहीं होती, क्योंकि विभिन्न धर्मों के आगमों में परस्पर विरोधी बातें आत्मा के सम्बन्ध में मिलती हैं । इसलिए आगम के स्वयं अप्रमाण होने से, आगम प्रमाण से भी आत्मा की सिद्धि नहीं हो सकती ; क्योंकि जो चीज है ही नहीं, उसके साथ उपमा किसकी दी जाय ? इसलिए किसी भी प्रमाण से आत्मा के सिद्ध न होने से आत्मा का अभाव ही सिद्ध होता है ।
मरने के बाद कौन अतः निष्कर्ष यह
न जाइ इह परे वा लोए - जब आत्मा ही नहीं है, तब इस मनुष्यलोक में अथवा देवलोक आदि अन्य लोकों में जाएगा ? यह है कि जीव कहीं भी इस लोक या परलोक में नहीं जाता ।
fifafa फुसति पुन्नपावं - शुभ-अशुभ कर्मों के पुण्य-पाप के रूप में बंध का भी जीव स्पर्श नहीं करता ।
नत्थि फलं सुकयदुक्कयाणं- जब जीव पुण्य-पाप का बंध ही नहीं करता; तब पुण्य-पाप का सुख-दुःख-रूप फल उसे क्यों मिलेगा ? इसलिए पुण्य-पाप का सुख - दुःखरूप फल भी नहीं है । क्योंकि जब जीव ही नहीं है तो कर्मों का बन्ध और उसका फल किसे मिलेगा ? अतएव सर्वशून्य है ।
पंचमहाभूतियं शरीरं— उनके सामने जब यह तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि जब जीव नहीं है तो यह शरीर किसके आधार पर टिका हुआ है ? इसके उत्तर में वे कहते हैं—'यह शरीर पंचमहाभूतों के संयोग से बना हुआ है । पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच महाभूत हैं । शरीर ही आत्मा है । शरीर से भिन्न कोई आत्मा