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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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पार्थिव है । चन्द्रमा के उदय होने पर उसकी किरणों का सम्बन्ध होने से उससे जल उत्पन्न होता है, पार्थिव सूर्यकान्तमणि से सूर्य की किरणों का संसर्ग होने पर अग्नि पैदा होती है । अरणि नाम की लकड़ी पार्थिव है, उसको परस्पर रगड़ने से उसमें से अग्नि पैदा होती है, स्वातिनक्षत्र का जलबिन्दु सीप में पड़ने से पार्थिव मोती बन जाता है । इत्यादि रूप में कार्यसांकर्य प्रत्यक्ष दिखाई देने के बावजूद भी पृथ्वी आदि के भिन्न-भिन्न परमाणुओं को अपने-अपने सजातीय का उत्पादक मानना प्रमाणविरुद्ध है ।
उनका दूसरा तर्क यह था कि 'अनित्य पृथ्वी, पर्वत आदि घटपटादि की तरह कार्य होने से किसी न किसी बुद्धिमान (ईश्वर) के बनाए हुए हैं; यह कथन भ्रमपूर्ण है । ऐसा कोई नियम नहीं होता कि हर एक चीज का बनाने वाला कोई न कोई बुद्धिमान कर्ता हो ही । बादल बुद्धिमान कर्त्ता के बिना भी बनते और बिखरते हुए दिखाई देते हैं। बिजली चमकती और नष्ट होती है, जमीन पर पानी बरसने पर घास आदि बुद्धिमान के उगाए विना ही उगती है, वर्षाऋतु में पानी बरसता है, शरऋतु में ठंड और ग्रीष्मऋतु में गर्मी आदि बिना ही किसी बुद्धिमान के पड़ती है । उसके पीछे कोई भी उन-उन पदार्थों के कार्यों को करता हुआ प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता । पदार्थों की उत्पत्ति और उनका नाश हम प्रत्यक्ष देखते हैं, लेकिन उनका कर्ता हर्ता तो नहीं दिखाई देता ।
यदि यों कहें कि ईश्वर कहां से दिखाई दे ? वह तो अमूर्त और अदृश्य है । वह हमारी आंखों से दृष्टिगोचर नहीं होता । तब हम उनसे पूछते हैं कि वह ईश्वर शरीररहित है या शरीरधारी ? यदि शरीररहित है, तब तो वह सृष्टि के पदार्थों को कैसे बनाएगा ? बिना शरीर या हाथ-पैर आदि अवयव के तो कोई भी कार्य नहीं कर सकता । यदि कहें कि वह शरीरधारी है, तो उसका शरीर नित्य है या अनित्य ? उसे नित्य तो कह नहीं सकते, क्योंकि वह अवयवरहित है । जो पदार्थ अवयवयुक्त (खण्ड के रूप में) होते हैं, वे सब घटपटादि की तरह अनित्य होते हैं । ईश्वर का शरीर भी सावयव माने पर वह अनित्य ही सिद्ध होगा । यदि ईश्वर का शरीर अनित्य है तो प्रश्न होता है - वह किसका बनाया हुआ है ? यदि कहें कि ईश्वर ने अपने शरीर को स्वयं ही बनाया है, तब तो उसके पहले भी ईश्वर के शरीर को मानना पड़ेगा । इस प्रकार उत्तरोत्तर आगे-आगे के शरीर के पैदा करने को लिए उसके पूर्व-पूर्व के शरीर मानने पड़ेंगे । इस तरह लगातार शरीर मानते जाने पर अनवस्थादोष उपस्थित होगा । अनवस्थादोष जहां आता है, वहाँ कार्य की सिद्धि नहीं होती ।
ईश्वर ने संसारी जीव को सुमार्ग पर चलने और कुमार्ग से बचने आदि का उपदेश दिया, इत्यादि कथन भी असत्य सिद्ध होता है । क्योंकि हम ऐसा कहने वालों से पूछते