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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
१९७ अर्थात्-"पहले यह जगत् घोर अन्धकारमय था। बिल्कुल अज्ञात, अलक्षण, अतयं तथा अविज्ञ य था। मानो वह सर्वथा सोया हुआ था। वह केवल एक समुद्र के रूप में था । उसमें स्थावर, जंगम, देव, मानव, दानव, उरग, भुजंग आदि कोई भी नहीं था; सब के सब प्राणी नष्ट हो गए थे। पृथ्वी आदि महाभूत तथा पर्वत, वृक्ष आदि से वह संसार रहित था। वह केवल गह्वररूप था । वहाँ मन से भी अचिन्त्य विष्णु सोये हुए तपस्या कर रहे थे । वहाँ सोये हुए विष्णु की नाभि से एक कमल निकला । जो तरुण सूर्यबिम्ब के समान तेजस्वी, मनोहर और सोने की कणिका वाला था । उस कमल में से दण्ड और यज्ञोपवीत से युक्त भगवान् ब्रह्म उत्पन्न हुए, जिन्होंने ८ जगदम्बाएँ (जगत् की माताएं) बनाई-दिति, अदिति, मनु, विनता, कद्रु, सुलसा, सुरभि और इला। दिति ने दैत्यों को, अदिति ने देवगणों को, मनु ने मनुष्यों को, विनता ने समस्त प्रकार के पक्षियों को, कद्र ने सरीसृपों (सब सो) को,सुलसा ने नागजातियों को, सुरभि ने चौपायों को और इंला ने समस्त बीजों को उत्पन्न किया।"
दोनों पौराणिक मतों की असत्यता-(१) अंडे से जगत् की उत्पत्ति बताने वालों से पूछा जाय कि कि जब जगत् पंचमहाभूतों से रहित था,जब उसमें कोई भी चीज नहीं थी, तब अंडा कहाँ से आया ? और पानी भी कहाँ से आया ? यदि यह कहें कि अंडा और पानी पहले से थे और उनके सिवाय वहाँ और कोई चीज नहीं थी, तो भूमि और आकाश ये दो महाभूत कहाँ से टपक पड़े ? और बाद में आपके ही मतानुसार पंचमहाभूतों के अभाव में देव, दानव, मानव और पशु-पक्षी कहाँ से पैदा हो गए ? अतः ये सब उटपटांग कल्पनाएँ प्रमाणबाधित होने से असत्य हैं । (२) विष्णु द्वारा सृष्टिरचना मानने वालों से पुछा जाय कि सृष्टि रचने से पहले जब कुछ भी नहीं था, तो विष्णु कहाँ रहे ? यदि कहें कि जल था, तो प्रश्न होता है-जल को किसने बनाया ? यदि कहें कि उसे किसी ने नहीं बनाया, स्वयमेव अनादिकाल से निर्मित है; तब पृथ्वी आदि पदार्थों को भी अनादिकाल से स्वयंनिर्मित क्यों न मान लिया जाय ? विष्णु ने तपस्या की इससे सिद्ध होता है कि विष्णु भी कर्मविशिष्ट थे, शक्तिहीन थे। इसलिए कर्मक्षय करने के लिए एवं शक्तिसम्पादन करने के लिए उन्होंने तप किया। इस प्रकार विष्णु भी हमारे ही समान कर्मविशिष्ट, अल्पज्ञ और असमर्थ सिद्ध होते हैं !
कोई भी वस्तु केवल इच्छा करने से या ज्ञानमात्र से नहीं उत्पन्न हो जाती, उसके लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता प्रतीत होती है। थोड़ी देर के लिए हम यों मान लें कि विष्णु में इच्छा, ज्ञान और प्रयत्न तीनों सृष्टिरचना के लिए थे, तो भी उपादानकारण के बिना कार्य कदापि नहीं हो सकता। प्रत्येक वस्तु का उपादान कारण पहले सिद्ध होना चाहिए । जब विष्णु ने ब्रह्मा को पैदा किया और ब्रह्मा ने