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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
जो जिसके गुण होते हैं, वे उस गुणी के साथ ही रहते हैं। जैसे मिट्टी के रूप, रस, गन्ध आदि गुण हमेशा मिट्टी के साथ ही रहते हैं, वैसे ही अगर सुख, दुःख, ज्ञान आदि गुण शरीर के होते तो सदा उसके साथ ही रहते । परन्तु मृत शरीर के साथ ये गुण नहीं रहते । इससे सिद्ध होता है कि ये गुण शरीर के अतिरिक्त किसी दूसरे पदार्थ के हैं और वह दूसरा पदार्थ आत्मा ही है।
आत्मा की सिद्धि अनुमान प्रमाण से भी होती है—(१) एक ही माता-पिता से जन्मे हुए पुत्रों में तीव्र-मंद बुद्धि, सुख-दुःख, धनसम्पन्नता-निर्धनता. आदि गुणों का अन्तर दिखाई देता है। ये सब बातें पूर्वजन्मगत शुभाशुभकर्मविशिष्ट आत्मा के माने बिना सिद्ध नहीं हो सकतीं। (२) चैतन्य पृथ्वी आदि पंचमहाभूतों से उत्पन्न नहीं हो सकता ; क्योंकि वह पंचमहाभूतों से भिन्न जाति का है। जो भिन्न जाति का है, वह भिन्न जाति वाले से उत्पन्न नहीं हो सकता। जैसे—पृथ्वी से भिन्न जाति वाले जलादि उत्पन्न नहीं हो सकते । वैसे पंच महाभूतों से चैतन्य भिन्न जाति का है। अतः वह उन पंच महाभूतों से उत्पन्न नहीं हो सकता । यदि भिन्न जाति वाले पदार्थ से भिन्न जाति वाले पदार्थ की उत्पत्ति मानी जायगी तो पृथ्वी से जलादि की, और जलादि से पृथ्वी की उत्पत्ति हो जानी चाहिए,पर ऐसा होता नहीं। इसलिए चैतन्यशक्तिविशिष्ट आत्मा शरीर से भिन्न पदार्थ है। अन्य अनेक प्रमाणों से आत्मा की सिद्धि की जा सकती है। परन्तु हम ग्रन्थविस्तार के भय से इस विषय को यहीं समेट लेते हैं। .
इन प्रमाणों से आत्मा की सिद्धि हो जाने पर नास्तिकवादियों के मत की. असत्यता स्पष्ट प्रतीत होती है ।
___ इसके अतिरिक्त पुनर्जन्म या परलोकगमन तथा इहलोक-आगमन के प्रत्यक्ष प्रमाण भारतवर्ष में पहले भी और अब भी मिले हैं। ऐसे कई बालकों का पता लगा है, जिन्हें अपने पूर्वजन्म के माता-पिता, पत्नी, घर, पड़ौसो, लेनदेन आदि सब बातों का स्मृतिज्ञान था, और उनके बताए हुए स्थान पर जा कर पता लगाने पर वे सब बातें सत्य मालूम हुई हैं। इसके अतिरिक्त अनुमान प्रमाण भी देखिये-जन्म लेते ही बालक को माता के स्तनपान आदि का ज्ञान होता है, वह उस समय तो सिखाया ही नहीं गया था, न गर्भ में ही सिखाया गया था । अतः वह ज्ञान पूर्वजन्म के अस्तित्व को सिद्ध करता है।
इस प्रकार नास्तिकवादियों द्वारा जीव के इह-परलोक-गमन के निषेध की असत्यता सिद्ध हो गई।
___ इसी प्रकार पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मबन्ध तथा उसके सुख-दुःखरूप फल के अस्तित्व के विषय में प्रमाण देखिये—संसारी जीवों में हम अनेक प्रकार की भिन्नता देखते हैं, उसका कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिए। बिना कारण के कोई भी