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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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विका आदि को चौपट करने की दृष्टि से कहते हैं कि "यह अपने मित्र की पत्नियों का सेवन करता है । इतना ही नहीं, यह धर्मशून्य भी है, विश्वासघातो है, पापकर्म करने वाला है, नहीं करने योग्य कार्यों को करने वाला है तथा भगिनी, पुत्रवधू, पूत्री आदि अगम्य स्त्रियों के साथ सहवास करता है, यह दुरात्मा बहुत-से पापों से युक्त है ।" इस प्रकार ईर्ष्यालु लोग झूठमूठ कते हैं। अच्छे स्वभाव वाले मनुष्य के परोपकार, क्षमा आदि गुणों, तथा कीर्ति, स्नेह एवं परभव की ज़रा भी परवाह न करने वाले वे असत्य - वादी असत्य बोलने में प्रवीण, दूसरों के दोषों को बताने में जुटे हुए, और मुख को अपना शत्रु बनाए हुए वे अधम पुरुष अक्षय दुःख के बीजरूप कर्म - बन्धन से अपनी आत्मा को जकड़ लेते हैं । दूसरों के धन पर गिद्ध की तरह दृष्टि गड़ाए वे धरोहर को हड़प जाते हैं, तथा सत्पुरुषों को उनमें अविद्यमान दोषों से दूषित करते हैं । लोभी मनुष्य झूठी साक्षी देने का काम करते हैं • तथा वे पवित्र और भद्र पुरुषों का अहित करने वाले असत्यवादी धन के लिए, कन्या के लिए भूमि के निमित्त, गाय-बैल आदि पशुओं के निमित्त अधोगति में ले जाने वाला बड़ा झूठ बोलते हैं । मिथ्या षड्यंत्र रचने में दत्तचित्त, दूसरों के असद्गुणों के प्रकाशक एवं सद्गुणों के नाशक, पुण्य और पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ, असत्याचरण में जुटे हुए लोग इसके अतिरिक्त और भी जाति, कुल, रूप और शील से सम्बन्धित, माया के कारण गुणहीन या मायानिपुण, चंचलता से युक्त, पैशून्यपूर्ण ( चुगली से भरपूर), परमार्थ के नाशक, असत्य अर्थ वाले या सत्त्वहीन, द्वेषरूप, अप्रिय, अनर्थकारी, पापकर्म के मूल मिथ्यादर्शन से युक्त, कर्णकटु, सम्यग्ज्ञानशून्य, लज्जाहीन, लोकनिंद्य, वध, बंधन और संक्लेश से पूर्ण, बुढ़ापा, मृत्यु, दुःख और शोक के मूल कारण, अशुद्धपरिणामों से संक्लेशयुक्त, हिंसा द्वारा प्राणियों के घात से युक्त, अशुभ या अनिष्ट, साधुओं द्वारा निंदनीय, अधर्म के जनक, पापयुक्त असत्य वचन बोलते हैं ।
पुनश्च - शस्त्रों को बनाने, जोड़ने और जुटाने के रूप में अधिकरणक्रिया में प्रवृत्त रहने वाले मनुष्य अनेक प्रकार के अनर्थ का कारण, जो अपने और दूसरे का विनाश का हेतु है, उसे करते रहते हैं । ऐसे ही अज्ञानपूर्वक बोलते हुए मूर्ख लोग घातक लोगों को – कसाइयों को भैंसों और सूअरों के सम्बंध