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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
हिंसा, चोरी आदि पापकर्मों के लिए वाचिक प्रेरणा देते हैं, अतः उनका वचन असत्य हो ही जाता है । इसलिए पापिष्ठ व्यक्ति असत्यवादी हैं ।
___ असंजया-जो अपनी इन्द्रियों और मन पर जरा भी संयम, नियंत्रण या अंकुश नहीं रख सकते, विषयों के दास बने हुए हैं, वे असंयम के वशीभूत होकर बात-बात में प्राणियों के लिए अहितकर तथा मिथ्या वचन बोलेंगे ही, जो असत्य की कोटि में है।
___ अविरया-जो हिंसा आदि आश्रवों से जरा भी विरत नहीं हैं, जिन्होंने व्रतों को यत्किचित् भी स्वीकार नहीं किया है, वे व्यक्ति सत्य-असत्य की कोई मर्यादा नहीं मानते और न उसे पालते हैं।
___ कवड-कुटिल-कड्य-चडुलभावा—जिनके रोम-रोम में कपट भरा है, कुटिलता भरी है, वचन में पद-पद पर कटुता है और जिनके भावों में बार-बार उतारचढ़ाव आते हैं, जो अपने शुद्ध विचार पर कुछ देर के लिए भी स्थिर नहीं रह सकते, उनको असत्यवादिता में तो कोई संदेह ही नहीं रह जाता।
कुद्धा-क्रोधी व्यक्ति क्रोध के आवेश में चाहे जो कुछ बोल देता है, वह अंटसंट भी बक देता है, इसलिए ऐसे क्रोधातुर व्यक्ति को सत्य का भान ही कैसे रह सकता है ?
लुद्धा-लोभी व्यक्तियों का भी यही हाल है। जब उन पर लोभ सवार हो जाता है तो वे सच-झूठ का कोई विचार ही नहीं करते । येन-केन-प्रकारेण अपने स्वार्थ या अति लोभ की पूर्ति करना ही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है। अतः लोभी भी प्रायः सत्यभाषी नहीं होता।
भया य—मनुष्य प्राण जाने, प्रतिष्ठा जाने या मार पड़ने का भय उपस्थित होने पर या संकट या खतरे के समय प्रायः असत्य का ही सहारा लेता है। भयाविष्ट व्यक्ति को उस समय सत्य की चिन्ता नहीं होती।
हस्सट्टिया-जो व्यक्ति हंसोड़, विदूषक या मजाकिया होता है, वह बात-बात में असत्य का सहारा लेता है। वैसे भी हास्य के वश मनुष्य असत्य बोलता है; जिसका नतीजा कई दफा बड़ा ही भयंकर आता है। हंसी-मजाक में झूठ बोल जाने पर सामने वाला व्यक्ति कई बार उसे सच मान लेता है और आत्महत्या तक कर बैठता है, या गलतफहमी का शिकार बन कर अनर्थ कर बैठता है। अतः हास्यानन्दी व्यक्ति प्रायः असत्यभाषी होते हैं।
सक्खी—अदालतों में कई पेशेवर गवाह होते हैं, उन्हें कुछ पैसे दे देने से वे झूठी गवाही देने के लिए तैयार हो जाते हैं । उनकी उस झूठी साक्षी में सत्य का अंश नहीं होता । इसलिए उन्हें असत्यभाषी कहा गया है ।