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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र नहीं हैं । लोक के स्वरूप का विपरीत वर्णन करते हुए नास्तिकवादी इस प्रकार से कहते हैं। ___असत् पदार्थों का निरूपण करने वाले बहुत से मूढ़ लोग इस आगे कहे जाने वाले दूसरे कुदर्शन (मिथ्यामत) का प्ररूपण करते हैं कि यह संसार अंडे से पैदा हुआ है । ब्रह्माजी ने उसे स्वयं बनाया है। इसी प्रकार यह भी असत्य वचन है—जैसे कई लोग कहते हैं कि लोक के प्रभु ईश्वर ने यह सृष्टि रची है । कई लोगों का कहना है कि जगत विष्णुमय है। कितने ही इस प्रकार असत्यभाषण करते हैं कि एक आत्मा (ब्रह्म) ही है, सारे संसार में व्याप्त है । दूसरी कोई वस्तु नहीं है। (सांख्यमत वालों का कहना है-) आत्मा (पुरुष) पुण्य और पापकर्मों का कर्ता नहीं है, किन्तु उनके सुख-दुःख रूप फल का भोक्ता है (पाठान्तरके अनुसार वह पुण्य-पाप के फल का भोक्ता भी नहीं है), इन्द्रियाँ और कारणभूत पदार्थ सर्वथा सब जगह और सब समय प्रकृति से भिन्न नहीं होते । अर्थात् सर्वत्र और सर्वदा प्रकृति में विद्यमान रहते हैं । आत्मा निष्क्रिय और निर्गुण (सत्व, रज और तमोगुण से रहित) है तथा . कर्मों के लेप से भी रहित है । इस प्रकार असत्य बात कहते हैं।
इस मर्त्यलोक में जो कुछ सुकृत या दुष्कृत दिखाई देते हैं या इस प्रकार की अन्य सब वस्तुएँ हैं, वे अपने आप हो (यदृच्छा से) उत्पन्न हुई हैं । अथवा स्वभाव से या दैव के प्रभाव भी से पैदा होती हैं। इस लोक में कोई भी पदार्थ किसी का बनाया हुआ नहीं है। किन्तु जितने भी वस्तु के लक्षणस्वरूप हैं और प्रकार (भेद) हैं, उन्हें नियति (भवितव्यता-होनहार) ही पैदा करती है-बनाती है । बहुत से लोग ऋद्धि, रस और साता के गर्व में चूर हो कर धर्माचरण करने में आलसी हैं, वे भी धर्मविचार की अपेक्षा से मिथ्या प्ररूपणा करते हैं।
दूसरे लोग अधर्मयुक्त होने से राजविरुद्ध झूठा दोषारोपण करते हैं वे चोरी न करने वाले को चोर कहते हैं, तथा लड़ाई झगड़ों और प्रपंचों से तटस्थ रहने वाले को लड़ाकू कहते हैं । शील-सम्पन्न परस्त्रीत्यागी को यह दुःशील-व्यभिचारी है, परस्त्रीगमन करता है, इत्यादि अपवाद लगा कर उसे बदनाम करते हैं । यह भी दोष लगाते हैं कि 'यह गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखता है । दूसरे कई लोग यों व्यर्थ ही उसकी कीति, आजी