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प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
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भोगना ही पड़ता है, इसी प्रकार हिंसा को चाहे कुलीन करे या अकुलीन, जान कर करे या बिना जाने करे, उसका भी दुष्फल उसे नरक और तिर्यञ्च योनि की प्राप्ति के रूप में भोगना ही पड़ेगा । यही कारण है कि शास्त्रकार मूलपाठ में स्पष्ट कर देते हैं- ' तस्स य पावस फलविवागं अयाणमाणा वड्ढति नरयतिरिक्खजोणि ।' अर्थात् हिंसा करने वाले, उस पाप के फल को जानते हुओं की तो बात ही क्या, नहीं जानते हुए भी महाभयंकर, अनवरत वेदनापूर्ण और दीर्घकाल तक अनेक दुःखों से व्याप्त नरक और तिर्यंच योनियों की अपने लिए वृद्धि करते रहते हैं । वे अशुभ कर्मों की बहुतायत के कारण आयुष्य क्षीण होने पर मर कर विविध नरकों में उत्पन्न होते हैं । आगे उन नरकागारों की भयंकरता, दुःखबहुलता और असुन्दरता का विशद वर्णन शास्त्रकार करते हैं । उसके बाद उन नरकागारों में वे कैसा बीभत्स, भयावना और कुरूप शरीर पाते हैं, इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है । और इसके बाद नरकों में किस प्रकार से पीड़ा दी जाती है ? अथवा अपने पूर्वकृत दुष्कर्मों के फलस्वरूप नरकगत जीव किस-किस प्रकार से दुःखित और पीड़ित होते हैं ? इसका भी वर्णन स्पष्ट है । यह वर्णन पदार्थान्वय और मूलार्थ में हम कर आये हैं, इसलिए यहाँ नहीं कर रहे हैं ।
नरकभूमियाँ कहाँ और कौन-कौन-सी हैं ?
प्रश्न होता है कि नारकीय जीवों के वे निवासस्थान ( नरकभूमियाँ) कहाँ पर हैं ? वे कितने हैं ? किस प्रकार से वे सब अवस्थित हैं ? इन प्रश्नों के उत्तर में हम अन्य शास्त्रों के आधार पर यहाँ वर्णन प्रस्तुत करते हैं
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आप जैन दृष्टि से १४ रज्जुपरिमाण लोक का नकशा अपने सामने खोल कर रखिए । लोक की परिभाषा जैन दृष्टि से यह है - जहाँ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गल और जीवास्तिकाय — ये ६ द्रव्य पाये जायँ, वह लोक है । यह लोक किसी का बनाया हुआ नहीं है, अपितु अनादि अनन्त है । इस अनन्त लोक के तीन विभाग हैं— ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक । ऊर्ध्वलोक में ज्योतिषी और वैमानिक देव हैं, मध्यलोक में तिर्यञ्च, मनुष्य और व्यन्तर तथा भवनपति देवों का निवास है और अधोलोक में नारकीय जीव हैं । इन तीनों लोकों की ऊँचाई - लम्बाई कुल मिल मिलाकर १४ रज्जुपरिमाण है । जिसमें से सात रज्जु - परिमाण से कुछ कम लम्बाई - ऊँचाई ऊर्ध्वलोक की है, पूरे सात रज्जु लम्बाई - ऊँचाई अधोलोक की है और बाकी की करीब एक रज्जु से भी कम लम्बाई मध्यलोक की है । नरक के जीवों का निवास अधोलोक में ही है, जहाँ निम्नोक्त सात भूमियाँ सात नरकों के रूप में क्रमश: एक के नीचे दूसरी अवस्थित है -१ रत्नप्रभा,