________________
प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
११३
( उवट्टिया ) निकले हुए तथा ( सावसेसकम्मा ) बचे हुए कर्मों वाले जीव, (इहं) इस लोक में, ( एवं ) इस प्रकार, ( पापकारी) प्राणवधरूप पाप करने वाले, (नरगं) नरक, (तिरिक्खजोणि) तिर्यञ्चयोनि (च) और (कुमाणुसत्त) कुमानुष पर्याय में (हिंडमाणा ) भ्रमण करते हुए (अनंता ) अनन्त ( दुक्खाइ ) दुःखों को (पावंति ) पाते हैं । ( एसो ) यह, (सो) वह पूर्वोक्त (पाणवहस्स) प्राणवध - हिंसा के, ( फलविवागो) फल का विपाक, ( इहलोइओ) इस लोकसम्बन्धी (पारलोइओ) व परलोकसम्बन्धी ( अप्पसुहो) अल्पसुख देने वाला, और (बहुदुक्खो ) भोगते समय महादुःखदायी है, (महन्भओ) वह महाभय रूप है, (बहुरयप्पगाढो) बहुत-सी कर्मरज से प्रगाढ़ है (दारुणो) रौद्र, (कक्कसो) कठोर, (असाओ ) असाता वेदनीय रूप -- दुःखरूप, ( वासस हस्सेहिं ) हजारों वर्षों में जाकर, ( मुच्चति) छूटता है । (य) और, 'जिसे (अवेदयित्ता) बिना भोगे, (हु) निश्चय ही, (मोक्खो) छुटकारा, (न अस्थित्ति) नहीं होता है।' इस प्रकार ( नायकुलनंदणो ) ज्ञातृकुल के नंदन (महप्पा ) महात्मा, ( वीरवरनामधेज्जो) जिनका प्रधान नाम 'वीर'महावीर है, (जिणो ) जिनेन्द्र ने ( उ ) निश्चय से (पाणवहस्स) हिंसा के, ( फलविवागं ) फल के विपाक को (कसि ) कहा है । (सो) वह, ( एसो) यह (पाणवहो ) प्राणिवध, ( चंडो) तीव्र कोपरूप, ( रुद्दो) रौद्र रुद्र ( खुद्दो) क्षुद्र जीवों का कार्य, (अणारियं) अनार्य लोगों द्वारा किया जाने वाला, (निग्घिणो ) घृणा से रहित, (निसंसो) नृशंस कार्य, ( महभओ) महाभय का हेतु, (बीहणओ) भयंकर, ( तासणओ) त्रास देने वाला, ( अणज्जो) अन्यायरूप अथवा (अणज्जाओ) सरलता (ऋजुता) से रहित, ( उव्वेयणओ) उद्वेग पैदा करने वाला, (य) तथा (निरवयक्खो ) दूसरे के प्राणों की अपेक्षा -- पर्वाह नहीं करने वाला, (निद्धम्मो ) धर्म से रहित, ( निष्पिवासो) स्नेहपिपासा से रहित, (निक्कलुणो ) करुणा से रहित, (निरयवासगमण निधणों) नरकावास में गमन ही जिसका आखिरी परिणाम है, ( मोहमहब्भयपवड्ढओ) मोहरूपी महाभय की वृद्धि करके अज्ञानता तथा महाभय को बढ़ाने वाला ( मरणवेमणसों) मरण से होने वाली दीनता पैदा करने वाला है ।
इस प्रकार ( पढमं ) पहला, (अहम्मदार) प्राणवध नामक अधर्म द्वार (समत्तं) समाप्त हुआ, ( तिबेमि) ऐसा मैं कहता हूँ ।
मूलार्थ -- इस प्रकार के पूर्व कर्म के उदय को प्राप्त, पश्चात्ताप से जलते हुए, पूर्वजन्म में किए हुए पाप कर्मों की निन्दा करते हुए, उन उन रत्नप्रभा आदि नरक भूमियों में वैसे-वैसे अत्यन्त चिकने-नहीं छूट सकने योग्य - निकाचित दुःखों को भोग कर आयुष्य का क्षय होने पर नरकों से निकले हुए बहुत-से जीव, मुश्किल से पार की जाने वाली अत्यन्त
८