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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
भी हो जाते हैं; ऐसे बातूनी लोगों में कभी-कभी परस्पर तू-तू मैं-मैं भी हो जाती है और वाक्युद्ध का अखाड़ा जम जाता है। कई बार निरर्थक बकझक और चखचख करने से क्रोधादि कषायों और वैर व द्वेष की परम्परा बढ़ जाती है। कामकथा, भोजनकथा, स्त्रीकथा, क्रूर राजनैतिककथा, एवं राष्ट्रीय कानून की कथा भी अर्थहीन, वासनावर्द्धक, कलहकारक एवं पापोत्तेजक बन जाती है । निरर्थक बातों में अधिकतर अतिशयोक्तिरूप असत्य का मिश्रण होने से यह भी असत्य की ही कोटि में है । इसी प्रकार वे वचन, जिनका अर्थ सुनने वाले के समझ में न आए या सुनने वाला एक के बदले दूसरा अर्थ समझ ले, अपार्थक वचन हैं, और असत्य हैं।
विद्द सगरहणिज्ज-विद्वष का कारण होने से निन्दनीय या परनिन्दाकारी वचन भी असत्य माना गया है । क्योंकि मन में किसी के प्रति विद्वष होने के कारण व्यक्ति को बोलने का भान नहीं रहता; वह आवेश में आकर अंटसंट बक देता है, जिसके प्रति उसके मन में द्वेष है, उसके लिए यद्वातद्वा बोलने अथवा उसमें अविद्यमान दुर्गुणों को प्रगट करने लगता है । यह असत्य का ही एक प्रकार है । लोकनिन्दनीय बातों का उपदेश देना भी असत् होने से असत्य है । जैसे शाक्तसम्प्रदाय के तंत्रग्रन्थ में बताया गया है-'मातृयोनि परित्यज्य विहरेत् सर्वयोनिषु' ('माता की योनि छोड़कर सभी स्त्रियों के साथ रमण करे ।') ऐसी लोकनिन्दनीय, धर्मविरुद्ध और शास्त्रनिन्द्य बातें घोर . असत्य की पोषक हैं।
अणु ज्जकं—वक्र (सरलता रहित) बोलना या किसी बात को टेढ़ेमेढ़े घुमाकर कहना, जिससे सुनने वाले उसकी असलियत को न समझ सकें। प्रायः धोखेबाज या ठग लोग बात को घुमा फिराकर ऐसे ढंग से कहते हैं, जिससे सुनने वाले आदमी के मन पर उसकी सचाई की छाप पड़ जाती है और इस तरह बात ही बात में वह लोगों को चकमा देकर पलायन हो जाता है । कई लोग दुगुना सोना बना देने या दुगुने नोट बना देने की बात कहकर लोगों को झांसे में डालने के लिए पहले थोड़ा-सा अधिक सोना उसके दिये हुए सोने के साथ रखकर उसके हृदय में विश्वास जमा देते हैं, फिर जब वह लोभ में आकर अधिक सोना बन जाने की धुन में अपने सोने के सब गहने उनके पास ले आता है तो वे कोई-न-कोई बहाना बनाकर वह सोना लेकर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं । यह वक्रतापूर्वक बोलने का नतीजा है ! यह भयंकर असत्य है, इसलिए इसे असत्य का पर्यायवाची बताया गया है ।
कक्कणा--मायामय या पापमय वचन कल्कना है । कल्कनां इसलिए असत्य की बहन है कि इसमें वचन के साथ माया, छल या कपट मिले रहते हैं । अथवा इसके साथ पापकारक कर्मों के सावध उपदेश का पुट रहता है। इसलिए ये दोनों ही प्रकार