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*प्रथम सर्गरक्षा करते हुए पराये अर्थका साधन करते हैं और जो अपने खार्थके लिये दूसरेके स्वार्थका नाश करता है, वह राक्षस है; उसकी उपमा किससे दी जाये। यह तो समझमें ही नहीं आता। प्यारी पुत्रो! इन पुरुषोत्तमने अपने गुणोंसे तुझे वशमें कर लिया है और तुने भो अपने आपको इनके हाथोंमें सौंप दिया है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। इसलिये मेरा यह आशीर्वाद है कि, तुम अपने स्वामीके साथ चिरकाल जीवित रहकर संसारके सभी सुख भोग करो।"
इसके बाद राजाने शुभ लग्नमें चित्त और वित्तके अनुसार सब सामग्री इकट्ठी कर उन दोनोंका विवाह कर दिया । कुमारको रहनेके लिये एक बड़ासा महल मिला। अनन्तर राजाने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार आधा राज्य कुमारको बाँट दिया। ___अपने पुण्योंके प्रभावसे कुमार पुष्पावताके साथ काव्य-कथा रस तथा धर्मशास्त्रके विनोदके साथ सुख-भोग करने लगे। पुण्यसे सारे मनोरथ पूरे होते हैं। कहा भी है कि “हे चित! तु किस लिये खेद करता है ? इसमें आश्चर्यको क्या बात है ? अगर तुझे मनोहर और रमणीय वस्तुओंको इच्छा हो, तो पुण्य कर, क्योंकि पुण्य बिना मनोरथ पूरे नहीं पड़ते। एक मात्र पुण्यका हो प्रभाव तीनों लोकमें विजय प्रदान करनेवाला है । इसके प्रतापसे बड़े-बड़े मतवाले हाथी, हवासे भी तेज चलनेवाले घोड़े, सुन्दर-रथ लीलावती स्त्रियाँ, वोज्यमान चामरसे विभूषित राजलक्ष्मी, ऊँचा श्वेत-छत्र और समुद्र तक फैली हुई सत्ता प्राप्त