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* प्रथम सर्ग
रक्षा करते हैं। कुमारने सोचा कि यह सब धर्मका ही प्रभाव है, इसलिये अब यहाँसे चलकर चम्पापुरीकी उस राजकुमारी कन्याको भी आराम कर दूं।" ऐसा विचार कर वे उसी वट-वृक्षपर चढ़ गये और एकभारण्ड पक्षीके पँखोंके बीचमें जा छिपे। सवेरे ही उठकर वे सब पक्षी चम्पापुरीके बागीचेमें आये । कुमार भी उसके पंखोंसे बाहर निकल, तालाबमें नहा-धोकर स्वादिष्ट फल खानेके बाद नगरकी ओर चले। मार्गमें ढिंढोरेकी आवाज सुनकर वे नगरीके मुख्य द्वारके पास आ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि नीचे लिखा श्लोक द्वारपर लिखा हुआ है :
"जितशत्रोरिय वाचा, मत्युत्रो-नेत्र दायिने ।
राज्यस्याई स्वकन्यां च, प्रदास्यामीति नान्यथा ॥" अर्थात्-“राजा जितशत्रु की यह प्रतिज्ञा है कि, जो कोई मेरी पुत्रीकी आँखें बना देगा, उसे मैं अपना आधा राज्य और अपनी कन्या दे डालूँगा, इसमें हेर-फेर नहीं होगा।" ___ यह श्लोक पढ़, मन-ही-मन प्रसन्न होते हुए कुमारने आसपासके लोगोंसे कहा,-"भाइयो! तुम लोग जाकर राजासे कहो कि एक विद्यावान् सिद्ध-पुरुष आया हुआ है और कहता है कि मैं राजकुमारीको आँखें ठीक कर दूंगा।" लोगोंने तुरत ही राजाके पास जाकर यह बात कह सुनायी । राजाने उन लोगोंको बहुतसा धन दिया और तुरत ही कुमारको अपने पास बुलवाया। उनके आनेपर राजाने उन्हें बड़े प्यारसे गले लगाया और बड़े आदरसे आसन देकर कहा,-"पुत्र! तुम कहाँसे आ रहे हो?