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* पार्श्वनाथ चरित्र *
कह सुनाओ ।"
फिर पूछा - "अच्छा, तो उसीका कुछ हाल बृद्धने कहा, – “ रातमें कहनेकी बात नहीं है। कहा भी है कि, दिनमें चारों ओर देखकर बातें करनी चाहिये ; पर रातको तो बोलना ही नहीं चाहिये । कारण, रातको जगह-जगह धूर्त्त लोग छिपे रहते हैं ।" यह सुन उस बच्चेने फिर बड़े आग्रहसे पूछा, तब उस बूढ़ेने कहा, कि इस वृक्षके स्कन्ध- प्रदेशमें जो लता लिपटी हुई है, उसीका रस निचोड़ कर भारण्ड - पक्षीकी बीटके साथ मिलाकर आँख में आँजनेसे नयी आँखें निकल आती हैं ।" यही बोलते-बोलते वे सब सो गये । यह सारा हाल ललिताङ्ग कुमारने सुनकर अपने मनमें विचार किया, -- “ यह बात सच है या नहीं ? पर इसमें सन्देह करनेका क्या काम है ? सन्तोंकी आपत्ति निवारण करनेके लिये धर्म सदा तैयार रहता है ।" यही सोचकर कुमारने हाथ से टटोलकर वह लता छुरीसे काटी और उसका रस निचोड़कर पास पड़ी हुई भारण्ड - पक्षीकी बीटमें मिलाकर अपनी आँखोंमें लगा लिया । दोही घड़ियोंके बाद कुमार की आँखें नवीन ज्योतिवाली हो गयीं । यह देख, अपनी चारों ओर निहार कर, कुमारको बड़ा सन्तोष हुआ । कहा भी है कि, जिस मनुष्यका पूर्व-कृत पुण्य जाग्रत रहता है, उसके लिये जंगल भी उत्तम नगर हो जाता है सारे संसारके लोग अपने हो जाते है, सारी पृथ्वी ख़जाने और रत्नोंसे भर जाती है । वनमें, रणमें, शत्रुओंके बीच में, जलमें, अग्निमें, महासमुद्र में, पर्वत-शिखरपर सोते हुए, प्रमत्त या विषम अवस्थामें पूर्वकृत पुण्य ही मनुष्यकी सदैव