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योग है। महाभारतमें अन्यत्र कृष्णका अक्षरात्मक निर्वचन भी प्राप्त होता है।
___ "रावयामास लोकान् यत् तस्मात् रावण उच्यते ।
यहां रावण शब्दका निर्वचन प्राप्त है। लोकान रावयामासमें रावयामास का सम्बन्ध रावणसे स्पष्ट हो जाता है जो ध्वन्यात्मक साम्य रखता है। दोनों ही शब्दोंमें रू शब्दे या गतिरेषणयोः धातुका योग है। इस शब्दका संकेतित निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे युक्त है।
“ज्येष्ठो रामोऽभवत्तेषां रमयामास हि प्रजा।"5 यहां राम शब्दका निर्वचन प्राप्त है। रमयामासके रम् धातुके द्वारा राम शब्दको स्पष्ट किया गया है। रमयामासमें रमु क्रीड़ायाम् धातुका योग है। राम शब्दमें भी रम् क्रीडायां धातुका योग हैं व्याकरणके अनुसार भी रम् धातुसे धञ् प्रत्यय कर रामः शब्द सिद्ध होता है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक महत्त्व रखता है।
ततः प्रदध्मौ स करं प्रादुरासीत् ततो बलम्
एतस्मात् कारणाद् राजन् विश्रुतः स करन्धमः ।। इस श्लोकमें करन्धम शब्दकी व्युत्पत्ति प्राप्त है। करं एवं दध्मौ के योग से करंधम शब्द माना गया है। करं+ ध्मा शब्दाग्निसंयोगयोः धातुसे करंधम शब्दको व्युत्पन्न माना गया है। इस शब्दमें इतिहास अन्तर्निहित है। करंधम क्यों नाम पड़ा इसका ऐतिहासिक विवरण इसमें स्पष्ट है।
पालनाद्धि पतिस्त्वं मे भर्तासि भरणाच्च मे।' यहां पति एवं भर्त्ता दो शब्दोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं। पति शब्द पा पालने धातुके योगसे निष्पन्न होता है जिसका संकेत पालनात् शब्दसे कर दिया है। व्याकरणके अनुसार भी पाधातुसे डति प्रत्यय कर पति शब्द निष्पन्न होता है। पुनः भर्तु-भर्ता शब्द भृभरणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है।भृधातुका संकेत स्पष्ट रूपमें भरणात् शब्दसे कर दिया गया है। दोनों निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे युक्त हैं। महाभारतमें अन्यत्र भी पालनार्थक पा धातुसे पति तथा भरणार्थक भृधातुसे भर्ताके निर्वचनका संकेत प्राप्त होता है।
न कुर्यां कर्म बीभत्सं युध्यमानः कथंचन
तेन देवमनुष्येषु वीभत्सुरिति विश्रुतः ।।' ४० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क