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धातुसे अच् प्रत्यय कर अघम् शब्द बनाया जा सकता है । ५६
(७१) तपु :- इसका अर्थ होता है- सन्तप्त। निरुक्तके अनुसार तपुस्तपतेः५ अर्थात् यह शब्द तप् सन्तापे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा सन्तप्त होकर। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार तप् सन्तापै धातुसे उन् प्रत्यय कर तपुः शब्द बनाया जा सकता है।
(७२) चरू :- इसका अर्थ होता है मृतिका पात्र, जिसमें जल आदि रखे जाते हैं, घट विशेष। निरुक्तके अनुसार चर्मृच्चयो भवति चरतेर्वा५ अर्थात् यह मिट्टीका समुदाय विशेष होता है या मृत्तिका समूहसे निर्मित होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें चर् गतौ धातुका योग है। समुच्चरन्त्यस्मादापः ५२ अर्थात् इस पात्रमें जल गतिमान होते हैं। या तो जल मरनेमें गति पाता है या जल निकालनेमें गति पाता है। इस पात्र में रखा जल भी यदा कदा डोलता रहता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। डा. वर्मा के अनुसार यह निर्वचन आख्यातज सिद्धान्त पर आधारित है।५७ व्याकरणके अनुसार चर् गतौ धातुसे उन् प्रत्यय कर चरू: शब्द बनाया जा सकता है। उक्त अर्थका द्योतक शब्द मगही भाषामें चरू (चरूइ) के रूपमें मिलता हैजो शुद्ध वैदिक शब्द माना जा सकता है।लौकिक संस्कृतमें भी इस शब्दका प्रयोग उक्त अर्थ में देखा जाता है।
(७३) क्रव्यम् :- इसका अर्थ होता है कच्चा मांस । निरुक्तके अनुसार क्रव्यं विकृताज्जायत इति नैरुक्ताः ५२ अर्थात् नैरुक्तोंके अनुसार क्रव्य शब्द कृत् छेदर्ने धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह काटनेके बाद प्राप्त होता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है । अर्थात्मक आधार इसका संगत है। व्याकरणके अनुसार क्लव् मये धातुसे यत् ५८ प्रत्यय (र का ल) कर क्रव्य शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें भी यह शब्द उक्त अर्थ में प्रयुक्त होता है । ५९
(७४) किमीदिन:- इसका अर्थ होता है आवारा । निरुक्तके अनुसार किमीदिने किमिदानीमिति चरते।५२अर्थात् इदानीं किम् अव क्या इस प्रकार कहता चलने वाला किमीदिन कहा जाता है। इसके अनुसार किम् + इदानीम् के योगसे ही किमीदिन शब्द बना है। २-किमिदं किमिदमिति वा पिशुनाय चरते५२ अर्थात् यह क्या है, यह क्या है - किमिदं किमिदं इस प्रकार कहते चलने वाले पिशुन (चुगलखोर) को किमीदिन कहा
३५५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क