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भग देवताका विशेषण है। २- इन्द्र इत्यपरं स बहुकर्मतमः पुरां च दारयितृतमः५२ अर्थात् कुछ लोगोंके अनुसार यह शब्द इन्द्रका वाचक है क्योंकि वे इन्द्र अनेक कर्मोंको धारण करने वाले हैं या शत्रुओं के पुरों (नगरों) को विदीर्ण करने वाले हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें मुरू +धी या पुरू+ धा या पुर +दृ विदारणे धातुका योग है।७४ ३- वरूण इत्यपरम्५२ अर्थात् कुछ लोग वरूण देवताको भी पुरन्धि कहते हैं। तं प्रज्ञया स्तौति अर्थात् इस वरूणदेवकी स्तुति प्रज्ञा, बुद्धिसे की जाती है।७६ इसके अनुसार इस शब्दमें पुरू+धी का योग है पुरू +धा धातुसे निष्पन्न पुरन्धि: शब्द ध्वन्यात्मक आधार रखता है। इसे भाषा विज्ञानके अनुसार उपयुक्त माना जायगा। शुक्ल यजुर्वेदके प्रसिद्ध भाष्यकार उव्वट तथा महीधर ने पुरन्धिः शोभन अंगोंसे युक्तका वाचक माना है।७७ इसके अनुसार-पुरं +धा का योग माना जायगा। भारोपीय भाषाकी अन्य शाखाओंमें भी इसके रूप दृष्टिगोचर होते हैं ग्रीक Plous सं. पुरू, अंग्रेजी deed कर्म (संस्कृत धा या धि७५ व्याकरणके अनुसार पुरू +घा + कि प्रत्यय कर पुरन्धि: शब्द बनाया जा सकता है।
(८९)रूशत् :- यह वर्णनामका वाचक है।निरुक्तके अनुसार रूपत् इति वर्णनाम। रोचतेज़लति कर्मण:५२ अर्थात् यह शब्द ज्वलत्यर्थक रूच् धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह प्रदीप्त होता है, चमकता है इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार रूप धातुसे अत् प्रत्यय कर रूशत् शब्द बनाया जा सकता है।
(९०) रिशादस :- इसका अर्थ होता है हिंसकों का नाशक। निरुक्त के अनुसार रिशादसः रेशयदासिनः५२ अर्थात् हिंसा करने वालोंको दूर फेंकने वाले। इसके अनुसार रिशादस में रिश् हिंसायां +अस् क्षेपणे धातुका योग है। रेशयत् (हिंसक) में रिश् धातु है जो पूर्व पदस्थ है तथा उत्तर पदस्थ अस् क्षेपणे धातु है। यास्क रिशादसः को रेशयत् + आसिनः के द्वारा स्पष्ट करते हैं। रिश् धातुसे णिच् + शतृ रेशयत् + अस् क्षेपणे रेशयद् रिशदस - रिशादसः। कुछ आचार्योंके अनुसार इसका निर्वचन रेशयदारिण:से किया गया है। इसके अनुसार इस शब्दमें रेशयत् +दृ विदारणे धातुका योग है।७८ अर्थ होगा हिंसकों (शत्रओं) को विदारण करने वाला। यह निर्वचन निरुक्तके वर्तमान संस्करणों में नहीं देखा जाता। दुर्गाचार्य ने अपनी दुर्गवृत्ति में इसका उल्लेख इस प्रकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि निरुक्त के किसी न किसी संस्करण में यह अवश्य
३६०:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क