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+ इन् अथवा कु शब्दे + अच इ. इति इ = कविः शब्द बनाया जा सकता है।
(४) गृध्र :- यह पक्षी विशेष, आदित्य, इन्द्रियका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-गृधः आदित्योभवति, गृह्यते: स्थानकर्मणो यत्त एतस्मिस्तिष्ठति अर्थात् गृध शब्द स्थान कर्मा गृधु धातुके योगसे निष्पन्न होता है। गृध-गृधा इसके अनुसार इसका अर्थ होगा आदित्य, स्थान में ठहरने वाला। गृध शब्दका अर्थ अध्यात्म पक्षमें इन्द्रिय भी होता है-गृधाणीन्द्रियाणि गृध्यतेनिकर्मणो यत एतस्मिस्तिष्ठति इन्द्रियके अर्थमें गृध शब्दका निर्वचन गृधु ज्ञाने धातुसे माना गया है क्योंकि ये ज्ञानमें ही अवस्थित हैं। गृध्र शब्दके विमिन्न अर्थ प्रदर्शन के लिए धातुकी अनेकार्थता स्पष्ट है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें गीध पक्षी विशेषके लिए इसका प्रयोग होता है। व्याकरणके अनुसार गृध् + क्रन् प्रत्यय कर गृध्र शब्द बनाया जा सकता है।
(५) पदवी :- पदवी कविश्रेष्ठका वाचक है। निरुक्तके अनुसार पदं वेतीति अर्थात् पदोंका ज्ञाता पदवी कहलाया। इसके अनुसार पदविदज्ञाने धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न माना जायगा। दुर्गवृत्ति के अनुसार स्खलित पदोंको साधुत्वके लिए लगाने वाला पदवी कहलायगा। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें पदवी मार्गका वाचक है।८ व्याकरणके अनुसारपदवि कृदिकारान्तादक्तिनःइतिपक्षे ङीष् = पदवी:बनायाजासकता है।
(६) वेदः :- यह ज्ञान, ऋगादि वेदका वाचक है। निरुक्तके अनुसार वेदः विन्दतेर्वेदितव्यः१ अर्थात वेद शब्द विदधातके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह वेदितव्य है अर्थात् जानने योग्य है। विद्धातु ज्ञान, लाम, संता, विचारणा चेतना ख्यान, निवास आदि अर्थों में प्राप्त होता है। इस निर्वचनके अनुसार इसका अर्थ होगा ज्ञानसे सम्पन्न, ज्ञान भण्डार। विद् धातुसे वेद मानने पर वेद समग्र ज्ञान लाभ, सता, विचारणासे सम्पन्न माना जायगा। यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार विद् +घञ प्रत्यय कर वेद: शब्द बनाया जा सकता है।
(७) आपः :- यह जलका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-आप आप्नोते: अर्थात् यह शब्द आप्लु व्याप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह व्याप्त है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार-आप् धातुसे कर्मणि घञ् प्रत्यय कर आपः शब्द बनाया जा सकता है।
४९२:व्युत्पति विज्ञान और आचार्य यास्क