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प्रधानरूपमें होता है। अर्थावबोधके लिए निरपेक्ष रूपसे प्रतिपादित समग्र पदजात ही तो निरुक्त है। निरुक्त या निर्वचन को एक दूसरे के पर्याय के रूप में हम व्यवहार करते हैं। किसी शब्दमें निहित अर्थ या अर्थों को स्पष्ट करनेके लिए अनेक संभावनाओं की विवेचना धात्वादि की कल्पना निर्वचन है।
निर्वचनों की ऐतिहासिक परम्परा में संहिताओं का प्रथम दर्शन होता है। संहिताओं में ऋक,यजः,साम एवं अथर्व प्रसिद्ध हैं।संहिता मन्त्रों का समुदाय है। सहिताओं के मन्त्रों में कुछ विशिष्ट शब्दोंकी निरुक्ति प्राप्त होती है। मन्त्रोंका व्याख्यान भाग ब्राह्मण ग्रन्थ है। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में कर्मकाण्ड, ज्ञान काण्ड एवं उपासना काण्ड प्रधान रूपमें विवेचित हैं। ब्राह्मण भाग ही त्रिधा विभक्त हैं। कर्मकाण्ड की प्रधानता वाले ब्राह्मण ग्रन्थ, उपासना की प्रधानता वाले आरण्यक ग्रन्थ तथा ज्ञान काण्डकी प्रधानता वाले उपनिषद् ग्रन्थ हैं। ब्राह्मण ग्रन्थ मन्त्रों की यज्ञपरक व्याख्या प्रस्तुत करते हैं जिसके चलते हम उन्हें कर्मकाण्ड प्रधान कहते हैं। यज्ञ परक व्याख्या के क्रममें ये ग्रन्थ सम्बद्ध विषयोंके उपस्थापनके साथ ही आर्य सभ्यता एवं संस्कृति की विभिन्न पहलुओंको भी उद्भासित करते हैं। उसकी धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक बिम्बोंको तो प्रतिविम्बित करते ही हैं, वैदिक साहित्य की शब्दार्थ सम्पत्ति को विशेष रूप में विवेचित करते हैं। ब्राह्मण भाग में यद्यपि मन्त्रोंकी विविध प्रकार की व्याख्या हुई है तथापि शब्दोंके विवेचन क्रममें निर्वचन भी उपलब्ध होते हैं। शब्दों के अर्थको स्पष्ट करनेके लिए यहां ऐतिहासिक आधार विशेष रूपसे अपनाये गये हैं।निर्वचन में ऐतिहासिक आधारके साथ-साथ अन्य आधार भी देखे जाते हैं।
आचार्य शौनक रचित बृहद्देवता संस्कृत साहित्यमें प्रसिद्ध है। इसमें देवता सम्बन्धी विचार विशेष रूपमें प्रयुक्त हैं। देवता सम्बन्धी विचारोंके अतिरिक्त इसमें अन्य विषयोंका भी व्यापक विवरण उपलब्ध होता है। विषय विवेचन क्रममें इसमें निर्वचन भी दिये गये हैं। पुराणोंका भारतीय साहित्यमें महत्त्वपूर्ण योगदान है। अष्टादश पुराण व्यासदेवकी रचना है। वादरायण व्यासने भारतीय इतिहासको पुराणोंमें विवेचित किया है। पुराणोंमें विषयकी व्यापकता पायी जाती है। भारतकी तत्कालीन सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, भौगोलिक आदि स्थितियों का विशद चित्रण पुराणों में प्राप्त होता है। पुराणों में कुछ निर्वचन भी प्राप्त होते हैं, जो ऐतिहासिक, भौगोलिक, ध्वन्यात्मक, अर्थात्मक आदि आधार रखते हैं। इसमें कुछ नाम पदोंको स्पष्ट करने के लिए निर्वचनका सहारा विशेष रूप में लिया गया है। वाल्मीकि आदि कवि हैं इनकी रचना रामायण आदि काव्य है। भगवान् राम
४९५:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क