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के कृत्तों का गुम्फन तो इसमें हुआ ही है अनेक अवान्तर वृत्त भी इसमें प्रतिपादित हैं। चौबीस हजार श्लोकों वाले इस महाकाव्य में यत्रतत्र निर्वचन भी प्राप्त होते हैं। इसमें आये संज्ञापदोंको स्पष्ट करनेके लिए निर्वचन भी दिए गए हैं जिससे उन संज्ञाओंके कर्म, रूप, सादृश्य आदिका संकेत प्राप्त हो जाता है। महाभारत विश्वका सर्वाधिक विशाल महाकाव्य है। इसमें एक लाख श्लोकोंका संग्रह है। वेद व्यासकी इस रचनामें समग्र विषय उपस्थित हैं। इसके संबंधमें कहा गया है कि जो यहां है वही अन्यत्र भी है जो यहां नहीं है वे अन्यत्र भी नहीं है। महाभारत की कथा पर आधारित इस महाकाव्यमें अवान्तर कथाओंका समूह व्याप्त है। द्वापरकालीन भारतीय संस्कृतिको उपन्यस्त करने वाला यह महाभारत शब्दोंके निर्वचनमें भी पीछे नहीं है। बहत सारे शब्द अपनी क्रियाओं की प्रधानता को व्यक्त करते हैं साथ ही साथ क्रियाओंके साथ विवेचित भी.हये हैं। लौकिक संस्कृत साहित्य अपने विपुल भण्डार से समृद्ध है। इसके पद्यकाव्य, गद्यकाव्य एवं चम्पूकाव्य अत्यधिक आयामी हैं। इन्द्रियों की उपयोगिता के आधार पर संस्कृत साहित्य को दृश्यकाव्य एवं श्रव्यकाव्य के रूप में देखा जा सकता है। दृश्यकाव्य में १० रूपकों एवं १८ उपरूपकों का विशाल भण्डार है। श्रव्यकाव्यमें महाकाव्य, खण्डकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पकाव्य आदि आते हैं। काव्य साहित्य के अतिरिक्त व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन, अर्थशास्त्र आदि भी लौकिक संस्कृत के भण्डार हैं। समग्र लौकिक संस्कृतमें यत्रतत्र निर्वचन प्राप्त होते हैं। सबोंका अन्वेषण एवं प्रदर्शन इस शोध प्रबंध में संभव नहीं। यहां लौकिक संस्कृमें प्रधान भूत महाकवि कालिदास के काव्यों से ही कुछ निर्वचन प्रस्तुत किए गए हैं। वैदिक संस्कृतसे लेकर लौकिक संस्कृतके निर्वचनों का परिदर्शन स्थालीपुलाक न्याय से किया गया है जो इस शोध प्रबंध के द्वितीय अध्यायमें विवेचित है। इन निर्वचनों का तुलनात्मक अनुशीलन भी वहीं उपस्थित किया गया है। वैदिक काल से लेकर अद्यतन निर्वचन की प्रक्रिया का मूल्यांकन ही यहां उद्देश्य रहा है।
षडंगों में निरुक्त भी परिगणित है। शिक्षा, कल्प, छन्द, व्याकरण, ज्योतिष एवं निरुक्त वेद के अंग होनेके कारण वेदांग तथा छ संख्या में होने के कारण षडंग कहलाते हैं।१० वैदिक साहित्य में निरुक्त के महत्व को भूला नहीं जा सकता। सम्प्रति एक ही निरुक्त ग्रन्थ उपलब्ध होता है जो आचार्य यास्क की रचना है। निर्वचनों का वैज्ञानिक एवं समृद्ध शास्त्र निरुक्त ही है। निरुक्त की रचना उस समय हुई जब वेद की परम्परा प्रवाहित थी। वैदिक संस्कृत विश्व में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त कर चुकी थी। सम्पूर्ण कर्म यज्ञमय था। यज्ञों में वैदिक मन्त्रों की ध्वनि अविरल व्याप्त थी। वेदों में प्रयुक्त मन्त्रों की
४२६ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्द यास्क