Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 497
________________ निर्वचनमें दृश्यात्मक आधार भी विचारणीय होता है कुछ शब्दोंकी निर्मिति दृश्यात्मक आधार पर आधारित होती है। पृथ्वी शब्दके निर्वचनमें यास्क दृश्यात्मक आधार को उपस्थापित करते हैं। बहुत आशंकाओंके बाद भी यास्क का यह कथन कि यह देखनेमें फैली हुई है इसलिए इसे पृथिवी कहते हैं अपने आपमें महत्त्वपूर्ण है।१३ इस प्रकारके अनेक शब्द हैं जिनके आधार दृश्यात्मक हैं। कुछ शब्दोंके नाम शब्दानुकरण पर भी आधारित हैं किसी वस्तु या संज्ञाकी ध्वनियों के आधार पर बहुत सारे शब्द व्यवहारमें देखे जाते हैं। विशेष कर पक्षियों के नाम में शब्दानुकरण को सम्बद्ध देखा जाता है। आचार्य यास्क भी पक्षियों के नाम में शब्दानुकरण सिद्धान्त को विशेष रूपमें प्रश्रय देते हैं । १४ यह सिद्धांत अन्य भाषाओंके साथ भी मान्य है। संस्कृत का काक, अंग्रेजी का (पदै) क्रो इसी प्रकार निष्पन्न हैं। यास्क ने कृकवाकु, तित्तिरि: आदि अनेक शब्दों को उपस्थापित कर इस सिद्धान्त को महत्त्व मण्डित किया है। यद्यपि सभी शब्द उनके शब्दानुकरण पर आधारित नहीं हैं। यास्क ने भी सभी शब्दोंके निर्वचनमें शब्दानुकरणको आधार नहीं बनाया है लेकिन शब्दानुकरण पर आधारित कुछ शब्दोंके अस्तित्व पर आशंका नहीं की जा सकती। सादृश्यके आधार पर भी वस्तुओंके नाम देखे जाते हैं। सादृश्यका अर्थ होता है समानता। कर्म सादृश्य, गुणसादृश्य, रूपसादृश्य, धर्मसादृश्य आदिके आधार पर बहुतसे शब्द आधारित हैं । निर्वचनमें रूपात्मक एवं ऐतिहासिक आधार भी अपनाये जाते हैं। कुछ शब्द अपने साथ एक विशेष इतिहास भी सुरक्षित रखते हैं। अपत्यार्थक शब्द विशेष रूपसे ऐतिहासिक महत्त्व रखने वाले हैं। यास्क भी इन प्रकारके शब्दोंके निर्वचनमें ऐतिहासिक आधार को ही अपनाते हैं । ऐतिहासिक आधार वाले शब्दोंके निर्वचनमें वे ब्राह्मण ग्रन्थोंका प्रमाण भी उपस्थापित करते हैं। यास्क द्वारा अपनाये गये उपर्युक्त मान्य आधारों के विश्लेषण एवं विमर्श प्रकृत शोध प्रबंध के पंचम अध्याय में किए गये हैं। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे निर्वचनके मान्य आधारों का उपस्थापन एवं तद्विषयक यास्ककी दृष्टिका मूल्यांकन भी वहींसम्पन्न हुआ है। निर्वचन के क्षेत्रमें यास्क का योगदान सर्वाधिक है। निर्वचन शास्त्र के जन्मदाता के रूप में भी हम यास्क को ही देखते हैं, जबकि निर्वचन विज्ञान का उत्कर्ष भी इनकी ही रचनाओं में उपलब्ध होता है। इनके पूर्व के निरुक्त ग्रन्थ की अनुपलब्धि ही उपर्युक्त कथन का कारण संभावित है। यास्क ने निघण्टु के शब्दों का निर्वचन करना अपना अभीष्ट समझा तथा उनके ही शब्दों का चिन्तन एवं निर्वचन अपने निरुक्त ग्रन्थमें किय निघण्टु वैदिक शब्दोंका समाम्नाय ५०० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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