Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 490
________________ (८) हंस :- इस शब्दका विवेचन चतुर्थ अध्यायमें किया जा चुका है। यहां हंस शब्द सूर्य एवं परमात्माका वाचक है। हंस शब्दमें गत्यर्थक हन धातका योग है। ये दोनों सर्वत्र गामी हैं। निरुक्तमें यहां हंसयन्त्ययति' कहकर स्पष्ट किया है। अययति गच्छतिका प्रतीक है। अत: गत्यर्थक हन धातकी ओर यास्क संकेत करते हैं। इस शब्दका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। डा. वर्मा इस निर्वचन को आख्यातज सिद्धान्त पर आधारित मानते हैं। हंसका निर्वचन सादृश्य पर आधारित है। गमन सादृश्यके कारण हंस पक्षी, सूर्य तथा परमात्मा हंसके नामसे भी अभिहित होते हैं ओल्ड हाई जर्मन में गन्स शब्दका प्रयोग हंसके लिए पाया जाता है। -: सन्दर्भ संकेत :१. नि. १४/१, २. अष्टा. ३।२।१०२, ३. समाने ख्य: सचोदात्त: उणा. ३११३७, ४: हलायुध-पृ. २१४, ५. अम. को. २।५।२१, ६. सुसूधाञ् गृधिभ्यः क्रन्-उणा. २।२४,७. स्खलन्ति पदानि साधुत्वेन योजयति इति पदवी: वी गतौ इत्यस्मात् क्विपि रूपम्-नि.दु.वृ. १४।१, ८. अम.को. २।१।१५, ९. हला. को.-पृ. ४०९. .: उपसंहार : निर्वचन शब्दनिहित अर्थों के अनुसन्धानकी विशिष्ट प्रक्रिया है। साहित्यमें वैसे ही शब्द प्रयुक्त होते हैं जिनमें कोई न कोई अर्थ सन्निविष्ट होता है। भाषा के प्रारंभिक कालमें वैसे शब्द भी प्रयुक्त हो सकते हैं जिन शब्दोंके अर्थ परिवर्तनकी स्थिति से अभिगमन करता है। साहित्य में प्रयुक्त होने के समय उन शब्दोंके अर्थों में निश्चितता आ जाती है। कुछ शब्दोंमें एकाधिक अर्थ होते हैं क्योंकि अनेकार्थक शब्दोंकी संख्या भी साहित्य में कम नहीं है। " __ शब्दोंके माध्यमसे सारी बातें अभिव्यक्त होती हैं। समग्र अर्थों का प्रकाशन शब्दोंके माध्यमसे सरलतया सम्पन्न होता है। आचार्य दण्डी ने ठीक ही कहा है कि • यह सम्पूर्ण संसार अन्धकारमय होता यदि शब्द नामक ज्योति उसे प्रकाशित नहीं करती। यद्यपि अर्थ प्रकाशनके अन्य भी साधन हैं लेकिन वे सभी साधन अपेक्षाकृत जटिल, व्ययसाध्य, श्रमसाध्य एवं अत्यधिक कालक्षेपक हैं। शब्दोंमें अनेकार्थता सुविदित है। विभिन्न कारणोंसे एक ही शब्द अनेक अर्थों को अभिव्यक्त करता है। गुण, कर्म, रूप, सादृश्य, वचन आदि के आधार पर एक ही शब्द में अनेक अर्थों को व्याप्त देखते हैं। वैदिक साहित्य में ४९३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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