Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 479
________________ उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। द्वितीय निर्वचन व्यवहार परक अर्थ रखता है तथा तृतीय स्तर हीन कल्पनासे युक्त है। व्याकरणके अनुसार सृ गतौ या सू प्रेरणे धातुसे क्यप् प्रत्यय कर सूर्य : शब्द बनाया जा सकता है।२५ । (१६) पूषा :- यह आदित्यका वह रूप है जो अपनी किरणोंसे सभी को पुष्ट करता है। निरुक्तके अनुसार अथ यद्रश्मिपोषं पुष्यति तत् पूषाभवति१४ जो सूर्य रश्मि द्वारा प्रकाशित करता है पुष्ट करता है या व्याप्त है वह पूषा है। इसके अनुसार पूषा शब्दमें पूष पृष्टौ धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार पुष्ट है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। अर्थात्मकता दृश्य पर आधारित है। व्याकरणके अनुसार पूष् वृद्धौ + कनिन् प्रत्यय कर पूषण पूषा शब्द बनाया जा सकता है।२६ (१७) विष्णु :- इसका अर्थ होता है मध्यम स्थानीय देवता - सूर्य। निरुक्तके अनुसार (१) अथ यतिषितो भवति तद्विष्णुर्भवति१४ जब सूर्य किरणोंसे व्याप्त होते है तब विष्णु कहलाते है। अपने प्रकाशसे व्याप्त करनेके कारण ही विष्णु कहलाते हैं। इसके अनुसार इस शब्द में विष् व्याप्तौ धातुका योग है। (२) विष्णुर्विशते१४ विष्णु शब्द विश प्रवेशने धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि यह अपनी किरणोंसे सब जगह आविष्ट होता है।२७ (३) व्यश्नोते१४ विष्णु शब्द वि + अशुड़ व्याप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। यह अपनी किरणोंसे सभी को व्याप्त कर लेता है। विश धातुसे विष्णुः शब्द मानने में ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। विष्णु पुराणमें भी विश् धातुसे ही विष्णु शब्दकी व्युत्पत्ति संकेतित है।२८व्याकरणके अनुसार विश् व्याप्तौ धातुसे नुःप्रत्यय कर विष्णु शब्द बनायाजा सकता है।९ (१८) पांसव :-यह धूलिका वाचक है। पांसु धूलि को कहते है तथा पांसु का ववचन रूप पांसव: है। निरुक्त के अनुसार . पांसवः पादैः सूयन्त इतिवा१४ यह पैरोंसे पैदा होती है। इसके अनुसार यह शब्द पादैः का पाद तथा उत्पन्न करना अर्थ वाले सु धातुके योगसे निष्पन्न होता है। (२) पन्नाः शेरते इतिवा१४ ये धूल गिर कर पड़ी रहती है या सोती रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें पद् गतौ एवं शी शयने धातुका योग है।(३) पिंशनीया भवतीतिवा१४ वह नाशके योग्य होती है। शरीर में लग जानेपर लोग धूल को झाड़ देते है। इसके अनुसार इस शब्दमें पिष संचूर्णने धातुका योग है। इन निर्वचनोंमें प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। इन निर्वचनों की अर्थात्मक कल्पना उत्तम श्रेणी की नहीं है। डा-वर्मा के अनुसार इन निर्वचनों ४८२:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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