________________
द्वारा स्पष्ट है।
(३२) देवाः :- देव शब्द का निर्वचन सप्तम अध्याय में हो चुका है। यहां देव शब्द सूर्यके लिए प्रयुक्त हआ है। द्वितीय अध्यायमें देवो दानाद्धा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा के द्वारा देव शब्दका निर्वचन किया गया है।५० दान के कारण दीपन के कारण तथा द्योतन के कारण देव कहलाता है। विशेष विवरणके लिए सप्तम अध्याय का देव शब्द निर्वचन द्रष्टव्य है।
(३३) विश्वेदेवाः :- यहां विश्वेदेवाः सूर्य रश्मियोंका वाचक है। निरुक्तके अनुसार विश्वेदेवाः सर्वे देवाः अर्थात् विश्व शब्द सर्व का द्योतक है। यास्कने विश्वेदेवा:४९ शब्दका निर्वचन प्रस्तुत नहीं किया है मात्र अर्थ स्पष्टकिया है।माषा विज्ञानकी दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जायगा। विश्वेदेवाःशब्द व्याकरणकी प्रक्रिया के अनुसार सामासिक शब्द है सामासिक प्रक्रियाके द्वारा ही इसका निर्वचन हो जाता है।
(३४) साध्याः :- यह देवताका वाचक है, सूर्य रश्मियां। निरुक्तके अनुसार साध्या-देवाः साधनात्४९ सम्पूर्ण जगत् को साधन से युक्त बनाते हैं, सिद्ध करते हैं,प्रकाशित करते हैं, अतः साध्या: देवतागण कहलाते हैं। साघन से साध्य माना गया है। इसके अनुसार इसमें साध् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। निरुक्तकारोंके अनुसार साध्याः धुलोक स्थित सूर्यरश्मियां हैं। ऐतिहासिकों के अनुसार साध्या सत्ययुग माना जाता है। क्योंकि इसमें प्राणी मोक्षकी साधनामें संलग्न रहते हैं। व्याकरणके अनुसार सिणिक्यत् प्रत्यय कर साध्यः साध्या: शब्द बनाया जा सकता है।
(३५) वसवः :- यह अनेकार्थक है। वसुका बहुबचन रूप वसवः है। निरुक्तके अनुसार वसवो यद्विवसते सर्वम्भर ये सम्पूर्ण जमत् को आच्छादित किए रहते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें वस् आच्छादने धातुका योग है। वसु अग्निका वाचक है। वसुओंके साथ रहनेके कारण वह वासव कहलाती है। फलत: वह पृथिवी स्थानीय है|१३ वसओंके साथ रहनेके कारण इन्द्र को भी वासव कहा जाता है। फलतः वसव: मध्यस्थानीय है।५४ वसवः का अर्थ आदित्य रश्मियां भी है-योंकि वह अन्धकार को विवासित करती है- वसव आदित्य रश्मयो विवासनात् तस्मात् धु स्थाना:४९ इसके अनुसार वसव में वसु स्नेहच्छेदापहरणेषु धातुका योग है। सूर्यरश्मियां मानने पर इसे धुस्थानीय मानना पड़ेगा। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। पृथिवी, नयत्रः,सोम,अग्निः,वाय,अन्तरिक्षः,आदित्य तथा द्यौ आठ वसुओंके द्वारा सम्पूर्ण
४८६ व्युत्पति विज्ञान और आचार्य यास्क