Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 481
________________ जहर भी होता है।३८ व्याकरणके अनुसार विष्ल व्याप्तौ धातुसे कः प्रत्यय कर विषम् शब्द बनाया जा सकता है।३९ (२३) वृषाकपि :- यह संज्ञापद है। यह अस्त कालीन आदित्यका वाचक है। निरुक्तके अनुसार अथ यद्रश्मिरभिप्रकम्पयन्नेति तद् वृषाकपिर्भवति, वृषाकम्पनः३४ जब अपनी किरणोंसे प्रकम्पित करता हुआ सूर्य अस्त होता है तब उस समय वह वृषाकपि कहलाता है। वह वृषा कम्पन है। अस्त होते हुए अपनी रश्मियोंसे भूतोंको कंपाता है। इसके अनुसार वृषाकपिः शब्दमें वृषा+ कम्प् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त नहीं माना जायगा। मात्र इसका अर्थात्मक महत्त्व है। कोशग्रन्थोंमें वृषाकपिः शब्दके शंकर, विष्णु तथा अग्नि अर्थ प्राप्त होते हैं।४० व्याकरणके अनुसार वृषं (धर्म) +कम्प् +इ प्रत्यय कर वृषाकपिः शब्द बनाया जा सकता है।४१ (२४) पलाशम् :- यह एक वृक्ष विशेष किंशुकका नाम है। निरुक्तके अनुसार पलाशं पलाशदनाद्४ पलाश शब्द परा + शद् धातु - पला+शद्धातुके योग से निष्पन्न हुआ है। यह शत्रुओंको नष्ट करने वाला है। प्रकृतमें पलाश द्यु लोकका वाचक है। र का ल रलयोरभेदः के अनुसार हआ है इसका अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। दुर्गाचार्यने इसमें पल+ अश् धातुका योग माना है।४२ व्याकरणके अनुसार पल + अश+ अण४३ या घत्र प्रत्यय कर पलाशः शब्द बनाया जा सकता है। यास्कका यह निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार पूर्ण संगत नहीं है। (२५) अजएकपात् :- इसका अर्थ होता है - अस्तादित्य। निरुक्तके अनुसार-अज एक पादजन एकः पाद:३४ सर्वदा गतिशील तथा ब्रह्मा का एक पादा४४ अजन- अज +एकपाद्- एकेन पादेन पातीति वा३४ एक ही अंश (पाद) से सम्पूर्ण जगत् की रक्षा करता है। एकेन पादेन पिबतीतिवा३४ एक ही पाद (अंश) से सम्पूर्ण जगत का जल पी जाता है। एकोऽस्य पाद इतिवा३४ अथवा एक ही पाद (अंश) सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त है। इस प्रकार अजएकपात्- अजन-अज + एक +पा रक्षणे, तथा पा पाने धातुके योगसे माना जायगा। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (२६) पविः :- यह वज्र का वाचक है। निरुक्त के अनुसार पविः शल्यो भवति यद्विपुनाति कायम्४ पविः वज्र होता है क्योंकि यह शरीर को फाड़ता है।४५ इसके अनुसार इसमें पू पवने धातु का योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे संगत माना ४८४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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