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(९) सरण्यू :- यह वृषाकपायी तथा त्वष्टा की दुहिता का वाचक है। निरुक्तके अनुसार सरण्यूः सरणात् । इस शब्दमें सृ गतौ धातुका योग है, . क्योंकि वह सूर्य की ओर गयी हुई है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार-सृगतौ + अन्य कर सरण्युः सरण्यूः बनाया जा सकता है । १३
(१०) कवि :- इसका अर्थ होता है मेधावी, काव्यकर्ता आदि । निरुक्तके अनुसार, कविः क्रान्तदर्शनो भवति १४ कवि क्रान्तदर्शन वाला होता है। सामान्य लोगों की अपेक्षा सभी पदार्थोंका अधिक ज्ञान रखता है। उससे किसी भी पदार्थका स्वरूप अज्ञात नहीं होता । १५ इसके अनुसार कवि शब्द में क्रम् धातुका योग माना जायगा। कवतेर्वा १४ वह अपने भावों को शब्दोंमें बांधता रहता है। या शब्द करता है। इसके अनुसार कविः शब्दमें कु धातुका योग है। प्रथम निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। द्वितीय निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार कु शब्दे + इ१६, कवृ वर्णे +इ:= कविः शब्द बनाया जा सकता है। यास्कका प्रथम निर्वचन व्यंजनगत औदासिन्य से युक्त है।
(११) रामा :- इसका अर्थ होता है-शूद्रा, कृष्णा । निरुक्तके अनुसार-रामा रमणाय उपेयते न धर्माय १४ वह रामा रमण (विषय मोग) के लिए होती है, धर्म के लिए नहीं। इसके अनुसार रामा शब्द में रमु क्रीडायाम् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा व्याकरणके अनुसार इसे रम् +अण् + टाप् कर (रमते रमयतीतिवा) या रम् + घञ् +=टाप् = (रमतेऽनयेति वा) रामा शब्द बनाया जा सकता है। (लौकिक संस्कृतमें रामा स्त्रीमेद है । १८ मात्र शूद्रा के लिए इसका प्रयोग नहीं होता। रामा अविद्याग्रस्त स्त्री होती है। अविद्याग्रस्त होना शूद्रा की विशेषता है। यास्कके समय रामा संभोग मात्रके लिए होती थी। उस समय स्त्रियोंका एक वर्ग और होगा जो विद्यावती होती होगी, उसे ब्रह्मवादिनी कहा जाता होगा। उपनिषदों में ब्रह्मवादिनी की चर्चा प्राप्त होती है। यास्कने रामाका पर्याय कृष्णा दिया है जो अविधा ग्रस्त होनेके कारण ही कृष्ण जातीय कृष्णा कहलाती थी ।) यास्कके निर्वचनसे तत्कालीन स्त्रियोंकी स्थितिका पता चलता है। निरुक्तमें रामाका अर्थ दुश्चरित्र स्त्री किया गया है। निश्चय ही रामा शब्दके अर्थमें बादमें उत्कर्ष हुआ है। यास्कके समय जो मात्र रमणके लिए थी धर्माचरण के लिए नहीं, वही रामा शब्द लौकिक संस्कृतमें उत्कृष्ट स्त्रीविशेष के लिए प्रयुक्त है। श्रीमद्भागवत में गीतकला से अमिस्मण करने वाली स्त्री विशेष रामा कहीं गयी हैं । १९
४८० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क