Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 475
________________ एवं चन्द्रमा अर्थ प्राप्त होते हैं जो अर्थ सादृश्य रखते हैं। यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे सर्वथा संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। और्णवाभका निर्वचन भी भाषा विज्ञानके अनुसार संगत है। व्याकरणके अनुसार प्रशस्ता अश्वा सन्ति ययो :अश्व+इन् = अश्विन् अश्विनौ, अथवा अश्विन्यां जातौ अश्विनौ बनाया जा सकता है। (२) उषा :- इसका अर्थ होता है सूर्योदय प्राक् समय। धु स्थानीय देवता। निरुक्तके अनुसार उषा वष्टे: कान्तिकर्मणः उषा शब्द वश् कान्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। व का उ सम्प्रसारण से हुआ है। उषा का अर्थ विद्युत् भी है जो मध्यम स्थानीय है- उच्छतेरितरा माध्यमिका इसके अनुसार उषा शब्दमें उच्छ विवासे धातुका योग है। विद्युत् प्रकाशमें अन्धकार हट जाता है। सूर्योदय प्राक् काल उषाके अर्थमें भी उच्छ् धातु माना जा सकता है, क्योंकि यह अन्धकार को काटती है। प्रथम निर्वचन दृश्यात्मक आधार रखता है उषा प्रकाश से समन्वित है। विद्युत् अर्थमें प्रथम निर्वचन की अर्थात्मक संगति उपयुक्त है। दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार उष् दाहे धातुसे असप प्रत्यय कर या उष् + का प्रत्यय कर उषा शब्द बनाया जा सकता है। (३) सूर्या :- सूर्य की पत्नी। निरुक्तके अनुसार- सूर्या सूर्यस्य पत्नी। एषैवामिसृष्टकालतमा अर्थात् सूर्या सूर्य की पत्नी है। उषा ही अधिक समय छोड़ने के बाद सूर्या बन जाती है। सूर्योदय तथा उषा के बीच का काल सूर्या है। सूर्या शब्द स्त्री प्रत्ययान्त शब्द है। सूर्य + आ= सूर्या। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरण के अनुसारसूर्य +चाप् =सूर्या शब्द निष्पन्न होता है।६ (४) किंशुकम् :- इसका अर्थ होता है प्रकाशयुक्त। निरुक्तके अनुसार किंशकं क्रंशते: प्रकाशयति कर्मण: यह शब्द प्रकाशन अर्थ रखने वाले क्रंश, धातुके योग से निष्पन्न होता है क्रंश्- किंशुकम्। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। यह अर्थात्मक महत्व रखता है। लौकिक संस्कृत में किंशुक पलाशका नाम है। उसका अवयव कुछ शुक के सदृश होता है इसलिए उसे किंशुक कहा जाता है। यास्क ने किंशुक शब्दका निर्वचन सूर्य रश्मिके अर्थमें किया है। किंशुक पलाशमें वर्ण सादृश्य आधार भी दृष्टिगत होता है। दुर्गाचार्य ने भी सुकिंशुकम् का अर्थ पलाश कुसुमके समान किया है। व्याकरणके ४७८:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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