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७।११।३, ५०. अष्टा. ३।३।१७४, ५१. कृदाधारार्चिकलिभ्यः कः- उणा. ३१४०, ५२. अच इ. उणा. ४।१३९, ५३. सिनीवाली कहरिति देवपल्यावितिनैरुक्ता: अमावास्येइतियाज्ञिका :। या पूर्वाऽमावास्या सा सिनीवाली-नि ११।३, ५४. हला. ७११ (पृ.), ५५. सुत्र्यसेक्रन्- उणा. २।९६, ५६. नृतिशृध्यो: क:- उणा. १९१, ५७. हला.. १६१ पृ., ५८. नि ११।४, ५९. दीप्ति रूपत्वात् कृष्णादीन अपेक्ष्य प्रशंसनीयो भवति-नि.द.तृ.११।४,६०.हलश्चअष्टा. ३।३।१२१ इति घञ्, ६१. एषा माध्यमिकावाक् इतिनैरुक्ताः धर्मधुगिति याज्ञिका मन्यन्ते-नि.दु.वृ. ११।४, ६२. धेट् इच्च-उणा. ३।३४ इतिनुः, ६३. अध्यादयश्च-उणा. ४/११०, ६४. दिगादिभ्यो यत्- अष्टा. ४।३५४, ६५. उपजीवन्त्येनत्- नि. ११।४, ६६. सर्व धातुभ्योऽसुन्- उणा. ४।१८९.
(च) द्वादश अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन
निघण्टुके पंचम अध्यायके षष्ठ खण्डमें देवताओंसे सम्बद्ध ३१ नाम संकलित हैं। पंचम अध्यायका षष्ठ खण्ड दैवत काण्डका अन्तिम खण्ड है। इन पदोंके निर्वचन निरुक्तके द्वादश अध्यायमें सम्पन्न हुए हैं।
निरुक्तके द्वादश अध्यायमें कुल ५१ निर्वचन प्राप्त होते हैं। इनमें निघण्टुके पंचम अध्यायके अंतिम खण्ड के ३१ पद भी संकलित हैं। इस प्रकार इस अध्यायमें २० ऐसे पद हैं जो या तो देवताओं से सम्बद्ध हैं या प्रसंगतः प्राप्त हैं। निघण्टुके दैवतकाण्डके अन्तिम खण्डमें पठित ३१ पदोंमें सबोंका निर्वचन यास्क यहां उपस्थित नहीं करते हैं। वैसे पद जिसकी व्याख्या पूर्वमें हो चुकी है, को पूर्व व्याख्यात कह कर काम चला लेते हैं। यह पुनरुक्त दोषसे बचनेका उत्तम प्रकार है। पर्व व्याख्यात इन शब्दोंके अर्थ बदल गये हैं या उनका अर्थान्तरमें प्रयोग हआ है, वैसे शब्दोंका वे अर्थ स्पष्ट कर देते हैं। पूर्व व्याख्यात शब्दोंमें सविता, त्वष्टा, भगः, विश्वानरः, वरूणः, विकेशिन्, यमः, वृक्षः, पृथिवी, समुद्रः, अथर्वा, आदित्यः, अंशु, सप्त ऋषयः, देवा और वाजिनः शब्द परिगणित हैं।
इस अध्यायके सभी निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे या निर्वचन प्रक्रिया से महत्त्वपूर्ण हैं। यास्कने एक पद में अर्थके अन्वेषणमें एक से अधिक निर्वचनों का उपस्थापन किया है। इन निर्वचनोंमें कुछ तो ध्वन्यात्मक या अर्थात्मक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। फलतः ऐसे निर्वचनों को भाषा विज्ञानकी दृष्टि से पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जायगा। भाषा विज्ञान की दृष्टि से इस अध्याय के पूर्ण निर्वचन हैं. अश्विनौ, उषा, सूर्या , वृषाकपायी, उक्षणः, सरण्यः, कविः,
४७६:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य याम्क