________________
रामा, अधोरामः, ककवाक, तुरः, सूर्यः, पूषा, विष्णः, केशी, विषम् , अजएकपात, पविः, पवीरवान्, मनुः, साध्याः, वसवः, स्वर्काः, विश्वेदेवाः, देवपत्न्यः और राट्। इन निर्वचनोंमें कुछ पदोंके एकाधिक निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपर्ण भी हैं। ध्वन्यात्मक आधारसे शिथिल निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टि में अपूर्ण निर्वचन है। ध्वन्यात्मक शैथिल्यि से युक्त निर्वचनों में किंशुकम, कविः, पांसवः, भरण्यः, दध्यङ् एवं स्वर्काः है। इन पदोंके निर्वचनोंमें कुछ निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे उपयुक्त भी हैं। अर्थात्मक आदि आधारके अपूर्ण रहने पर ही निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण माने जाते हैं। इस अध्याय के निर्वचनों में शल्मलिः, स्नुषा, भुरण्युः, वृषाकपिः, पलाशः तथा घृतस्नूः शब्द भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण है।
- यास्कने अश्विनौ पदके निर्वचनोंमें अर्थसादृश्यको भी अपनाया है। उषा एवं केशी पदके निर्वचन दृश्यात्मक आधारसे युक्त हैं। किंशुक पदके निर्वचनमें रूप सादृश्यका सहारा लिया गया है। वृषाकपायी, विश्वेदेवाः देवपल्यः आदि पदोंके निर्वचन सामासिक आधार रखते हैं।
इस अध्यायके प्रत्येक पदोंके निर्वचनोंका मूल्यांकन द्रष्टव्य हैं .
(१) अश्विनौ :- इसका अर्थ होता है द्यु स्थानीय देवता अश्विनी युगल। यह शब्द द्विवचनान्त हैं क्योंकि देवयुग्मका वाचक है। निरुक्तके अनुसार अश्विनौ यद् व्यश्नवाते सर्वं रसेनान्यो ज्योतिषाऽन्यः अश्विनी शब्द में अशङ व्याप्तौ धातुका योग है, क्योंकि ये दोनों सबोंको व्याप्त कर लेते हैं। एक रससे व्याप्त करते हैं तो दूसरे प्रकाश से। इसके अनुसार रससे व्याप्त करने वाले देव पृथ्वी स्थानीय माने जायेंगे तथा प्रकाशसे व्याप्त करने वालेधु स्थानीय। एक साथ रहनेके कारण दोनों द्युस्थानीय ही निघण्ट्र पठित हैं। अश्विनौ शब्दके निर्वचन क्रममें यास्क आचार्य और्णवाभके मत का भी उल्लेख करते हैं- अश्वैरश्विनावित्यौर्णवाम: इसके अनुसार अश्वि शब्द से अश्विनौ शब्द बना है। अश्विनौ का अर्थ होगा अश्ववन्तौ अश्व से युक्त। इस निर्वचनके अधार पर अश्व + इनि प्रत्यय से अश्विन- अश्विनौ माना जायगा।
अश्विनी युगल को स्पष्ट करते हुए यास्क कहते हैं कि कुछ लोगों के अनुसार अश्वि धुलोक एवं पृथ्वीलोक हैं क्योंकि धुलोक प्रकाशसे तथा पृथिवी रससे सबको व्याप्त करती है तथा दोनों गतिमान हैं कुछ नरुक्तोंके अनुसार अश्वि अहोरात्र है। दिन प्रकाश से तथा रात्रि ओस (रस) से सबको व्याप्त कर लेती है। ये दोनों भी गतिमान हैं। ऐतिहासिकों के अनुसार अश्विनी युगल पुण्य कर्मा दो राजा हैं क्योंकि वे अश्ववान् (घोड़ों से युक्त) होते हैं। इस प्रकार अश्विनी युगल के द्यावा पृथिवी, अहोरात्र, पुण्यवान् राजा तथा सूर्य
४७७:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क