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अनुसार किम् + शुक = किंशुक शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें किंशुक पलाश पुष्पका वाचक है।
(५) शल्मलि :- इसका अर्थ होता है सेमल। निरुक्तके अनुसार (१) शल्मलिः सुशरो भवति यह शब्द शृ हिंसायाम् धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि इसे आसानीसे काटा जा सकता है। (२) शरवान् वा अथवा कण्टकयुक्त होता है। सेमल वृक्ष में कांटे होते हैं। शर +वत्प शरवान शल्मलि: माना गया। इसमें र एवं ल वर्ण का अभेद माना गया है। किसी भी निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। सभी अर्थात्मक महत्व रखते हैं। लौकिक संस्कृतमें भी शल्मलि: सेमलके अर्थमें ही प्रयुक्त होता है। व्याकरणके अनुसार शल संचलने +मल धारणे धातु + इन्१० प्रत्यय कर शल्मलि: शब्द बनाया जा सकता है।
(६) वृषाकपायी :- यह धुस्थानीय देवता है। निरुक्तके अनुसार वृषाकपायी वृषाकषेः पत्नी वृषाकपि सूर्यका वाचक है। सूर्योदयके बाद सूर्या ही वृषाकपायी बन जाती है। सूर्योदय कालके प्रति गयी हुई यह सूर्या ओसकणों के वर्षण एवं कम्पन से वृषाकपायी कहलाती है।११ यह निर्वचन सामासिक आधार रखता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। समयके विभागका प्रकाशन ही वृषाकपायी है।
(७) स्नुषा :- इसका अर्थ होता है- पुत्रवधू। निरुक्तके अनुसार (१) स्नुषा साधुसादिनीति वा सम्यक् रूप में वंश का अंग बन कर रहने वाली होती है। इसके अनुसार साधु +सद्धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होगा। (२) साधुसानिनीतिवा यह अच्छी तरह गृह की वस्तुओं को व्यवस्थित करने वाली होती है। इसके अनुसार साधु+सन् सम्भक्तौ धातुका योग है। (३) स्वपत्यं तत् सनोतीति वा इसके अनुसार सु अपत्यका वाचक है तथा सन् सम्भक्तौ धातुका योग है। वह सुन्दर अपत्य प्रदान करती है। ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे कोई भी निर्वचन संगत नहीं है।सभीका अर्थात्मक महत्त्व है।व्याकरणके अनुसार स्नु प्रस्रवणे धातुसे सः प्रत्यय कर स्नुषा शब्द बनाया जा सकता है।१२
(८) उक्षण :- (अवश्याय) यह ओसका वाचक है। निरुक्तके अनुसारउक्षण उक्षतेर्वृद्धकर्मण: यह शब्द वृद्धयर्थक उक्ष् धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि इससे औषधियां बढ़ती है, या यह औषधियों को बढ़ाती है। (२) उक्षन्त्युदकेनेति वा या यह अपने जल कणोंसे पौधोंको सींचती है। इसके अनुसार इस शब्दमें उक्ष सेचने धातुका योग है। दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें संगत माना जायगा।
४७९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क