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+ अच्= जघ+नुक् = जघनम् शब्द बनाया जा सकता है।४५
(३४) उलूखलम् :- यह ओखलका वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) उलूखलमुरूकरं वां३२ अर्थात् मेरे लिए अधिक करने वाला हो इस अर्थको व्यक्त करने वाला उलूखल कहलाया। इसके अनुसार उस्करसे उलूखल शब्द माना जायगा -उरु+कर= उरुकरम् - र काल में परिर्वतन उलूकलम् क अल्प प्राण का महाप्राणीकरण - उलूखलम्। (२) ऊर्ध्वं खं वा३२ अर्थात् इसका मुख ऊर्ध्व होता है या आकाशमें होता है। खात या मुह ऊपर होनेके कारण उलूखल कहलाया। इसके अनुसार इस शब्दमें ऊर्ध्व+ खं का योग है। ऊर्ध्व ऊपर का वाचक है तथा खं खात का। (३) उर्कर वा३२ अर्थात् यह अन्न (उर्क) बनानेके लिए (अन्न कूटने के लिए) होता है। इसके अनुसार उt + कृ धातु का योग है - उ + कृ-उt + कर उक्कर - उरुकर • उलूखलम्। (४) उरु मे कुर्वित्यब्रवीत् तदुलूखलमभवत्। उरुकरं वै तत्तदुलूखलमित्याचक्षते परोक्षेणेति च ब्राह्मणम्।४९ अर्थात् ब्राह्मण ग्रन्थोंके अनुसार मुझे अधिक करो इस उरु + कृ से ही उरुकर - उलूखल हो गया। इसी उरुकरको परोक्ष रूपमें उलूखल कहा गया। उपर्युक्त निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार सभीको संगत माना जायगा। ब्राह्मण ग्रन्थोंके निर्वचन भी भाषा वैज्ञानिक महत्त्वसे युक्त हैं। व्याकरणके अनुसारऊर्ध्व खं लातीति उलूखलम्-ऊर्ध्व+खं+ला(ल)+क:-उलूखलम् शब्द बनाया जा सकता है।इस निर्वचनसे स्पष्ट होताहै कि यास्कके समयमें इसका व्यापक प्रयोग होता था।४८
(३५) आजे :- यह आजि शब्दके षष्ठ्यन्तका रूप है। आजि शब्दका अर्थ होता है संग्राम। निरुक्तके अनुसार- आजेराजन यस्याजवनस्येति वा४९ अर्थात् यह शब्द आङ उपसर्गक जि जये धातके योगसे निष्पन्न होता है या आङ उपसर्गक ज़ गतौ धातुके योगसे। आड्+ जि जय=आजि: मानने पर इसका अर्थ होगा विजय दिलाने वाला। आ+जु गतौ-आजि: मानने पर इसका अर्थ होगा गतिसे सम्पन्न। उपर्युक्त निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार आजि: शब्द अज् गतौ धातुसे उण् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।५०
(३६) सुभर्वम् :- इसका अर्थ होता है अच्छी तरह मधुरादि खाने वाले को। निरुक्त के अनुसार- सुभर्वं राजानम् भर्वतिरत्ति कर्मा४९ अर्थात् सुभर्व राजा का विशेषण है तथा भ... शब्द भक्षणार्थक है। सु+भ भक्षणे धातु के योग से सुभर्व शब्द निष्पन्न हुआ है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार
४३३: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क