Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 469
________________ है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे.मी युक्त है। व्याकरणके अनुसार सिनी शुक्ला वाला चन्द्रकला अस्यामिति सिनी + बल मिश्रणे + घञ् + ड़ीप् = सिनीवाली शब्द बनाया जा सकता है।५४ (३२) स्वस :- यह भामिनीका वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) स्वसा सुअसा इस शब्दमें सु + असा पद खण्ड है। सु +अस् मुवि धातुका योम स्पष्ट है। स का अर्थ होता है अच्छी तरह तथा असा रहने वाली। अच्छी तरह मर्यादासे रहने वाली स्वसा कहलाती है। (२) स्वेषु सीदतीति वाण्इसके अनुसार इस शब्दमें स्व + सद् विशरणगत्यवसादनेषु धातुका योग है, क्योंकि वह अपने लोगों में रहती है। दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा विज्ञानके अनुसार इन्हरुपयुक्त माना जायमा। व्याकरणके अनुसार सु + असु क्षेपणे धातु + ऋन कर स्वसा शब्द बनाया जा सकता है।५ अंग्रेजी भाषा का ster इसका अन्तराष्ट्रीय रूप है। (३३) स्तुक :- यह जघन तथा केशपाशका वाचक है। निरुक्तके अनुसारस्तुकःस्त्यायते: संघात:४० यह शब्द स्त्यै संघाते धातके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि जघन प्रदेशमें मांसादिका संघात है तथा केश पाश मी बार्लोका संघात होता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संमत माना जायगा। (३४)कुद :- इसका अर्थ होता है अमावास्या निरुवतके अनुरूस्कुहहते:४० यह मुह सम्बरणे धातुके योमसे निष्पन्न होता है। मुह धात्वस्थ आद्यधर ग् का क +कुह +ऊडू कुहः। यह चन्द्रमाको छियाती है। (२) चामूदीति वा (१) चन्द्रके अप्रत्यक्ष रहने पर वह (चन्द्र) का था ऐसा पूछे जाने के कारण भी इसे कुहूः कहा जाता है। इसके अनुसार इसमें-क्व + भू धातुका योग है। (३) क्च सती यत इति वा कहां रहती हुई पुकारी जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें क्व + हू धातुका योग है। (४) क्याहुत हविर्जुहोतीति वा कहां रहती हुई हवनको ग्रहण करती है। इसके अनुसार भी इसमें क्च + हू धातुका योग है। सभी निर्वच का अर्थात्मक महत्व है। समी कल्पनाश्रित आधार से युक्त हैं। व्याकरणके अनुसार कुह विस्मापने धातुसे कूः प्रत्यय कर कुहूः शब्द बनाया जा सकता है।५६ (३५) नर्य :- इसका अर्थ मनुष्य होता है। यास्क नर्य शब्दके तीन अर्थ किए हैं- १- मनुष्य, २- नृभ्योहितः अर्थात् मनुष्यों के लिए हितकारी। इसके अनुसास्न + यत् प्रत्यय है। ३- नसपत्यमितिवा- अर्यात नरकी सन्तानको भी नर्य: कह जा सकता है। यहां अपत्य अर्थम य प्रत्यय है। अन्तिम दो निर्वचन तद्धित पर आधारित है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायमा। ४७२:युत्पत्ति विज्ञान और अचार्य मास्क

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