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(२८) अनुमति :- चतुर्दशीसे व्याप्त पूर्णमासी के पूर्व भागको अनुमति कहते है। निरुक्तके अनुसार - अनुमतिरनुमननात् यह शब्द अनुमन् धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। यह ऐतिहासिक आधार भी रखता है। ऋषियों एवं देवों की एतद्विषयक अनुमति के कारण अनुमतिः कहा गया। निरुक्त सम्प्रदायके अनुसार अनुमतिः देवपत्नी है। याज्ञिक लोग इसे पौर्णमासी मानते है।४० ब्राह्मण ग्रन्थके अनुसार यह पौर्णमासीका पूर्वभाग है।४९ व्याकरणके अनुसार अनु + मन् + क्तिच् प्रत्यय कर अनुमतिः शब्द बनाया जा सकता है।५० __ . (२९) राका :- यह पूर्णिमाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार राका राते नकर्मण:४० राका शब्दमें रा दाने धातुका योग है, क्योंकि इसमें देवताओं को हवि दी जाती है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। अर्थात्मकता प्राचीन सांस्कृतिक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार रादाने धातुसे कः प्रत्यय कर राका शब्द बनाया जा सकता है।५१
(३०) सूची :- इसका अर्थ सूई होता है। निरुक्तके अनुसार सूची शब्द सिव् तन्तु सन्ताने धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि इससे तन्तु का सन्तान होता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण संगत नहीं है। अर्थात्मकता उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार सूच धातुसे इप्रत्यय कर सूचिः शब्द बनाया जा सकता है।५२
(३१) सिनीवाली :- निरुक्तकारों के अनुसार देवपत्नी तथा याज्ञिकोंके अनुसार यह अमावास्या है। अमावास्याके पूर्वभागको सिनीवाली कहते हैं।५३ निरुक्तके अनुसार - सिनमन्नं भवति सिनाति भूतानि४० सिनम अन्न का वाचक है। इसमें षिञ बन्धने धातू का योग है। षिञ +नक = सिनम्। यह सभी प्राणियों को बांधे रहता है। वाल पर्व का वाचक है क्योंकि उत्सवोंका वरण किया जाता है। इस प्रकार वृ धातुसे वार-वाल शब्द बना५४ वालं पर्व वृणोतेः तस्मिन्नन्नवती वालिनी वा।४० सिनीवाली शब्दमें दो खण्ड हैं सिनी + वाली। सिनी शब्द षित्र + नक+ डीप कर तथा वाली वृ - वार - वाल+ डीप कर बनाया जा सकता है। (वालोऽस्यास्तीति वाली सिनी चासौ वाली इति सिनीवाली अर्थात प्रशस्त अन्न युक्त पर्व वाली। वालिनी के लिए वालोऽस्यास्तीति वालिनी किया जा सकता है। (२) वालेनेवास्यामणुत्वाच्चन्द्रमाः सेवितव्यो भवतीति वा वाल की तरह सूक्ष्म होने से चन्द्रमा सेवितव्य होता है अतः इसे सिनीवाली कहा गया। इस निर्वचनका सामासिक आधार स्पष्ट है। सभी निर्वचनों का अर्थात्मक महत्त्व है अन्तिम निर्वचन उपमा (सादृश्य) पर आधारित
४७१:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क