Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 467
________________ है। (२) सुकृतकर्मणोभयम् सुकृत कर्म करने वालेका भय स्वरूप है यहां विषम् की व्याख्या भयम् से की गयी। (३) कीर्तिमस्य मिनत्तीति वा अथवा यह सुकृत कर्म करने वाले कीर्तिको नष्ट कर देता है। यहां किल् कीर्तिका वाचक है तथा भिद् धातुसे विषम् की व्याख्या की गई है। दुर्गाचार्यने किल्विष की व्याख्या में कहा है सुकृत का भेदक अथवा कीर्तिका विष।४४ उपर्युक्त निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण हैं। इनका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार किल् + वुक् + टिषच् प्रत्यय कर किल्विषम् शब्द बनाया जा सकता है । ४५ (२४) सरमा :- यह संज्ञा पद है। देवशुनी, इन्द्र की कुतिया, मध्यम वाक् इसके अर्थ है। निरुक्तके अनुसार- सरमा सरणात् यह शब्द सृ गतौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि यह गति युक्त है या घूमती रहती है। ४६ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार सृ गतौ धातुसे अमच् प्रत्यय कर सरमा शब्द बनाया जा सकता है। सरमा जो देवशुनीका वाचक है ऐतिहासिक आधार रखता है। निरुक्त सम्प्रदायके अनुसार सरमा मध्यम वाक् है । ४६ (२५) जगुरि :- इसका अर्थ होता है वहुत चलने वाला । या पुनः पुनः चलने वाला । निरुक्तके अनुसार जगुरिः जंगम्यते जगुरिः शब्द यङ् लुगन्त गम् धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । (२६) तक्म :- यह उष्णका वाचक है। निरुक्तके अनुसार तक्मेत्युष्ण नाम, तकत इति सत:४० यह शब्द तक् गमने धातुके योगसे निष्पन्न हुआ है, क्योंकि यह सब ओर गया रहता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार तक् सहनेमन् प्रत्यय कर तक्म शब्द बनाया जा सकता है। (२७) रसा :- इसका अर्थ होता है नदी । निरुक्तके अनुसार - रसा नदी, रसतेः शब्दकर्मणः।४° यह शब्द रस् शब्दे धातुके योगसे निष्पन्न हुआ है, क्योंकि नदी शब्द युक्त होती है। जल प्रवाहसे शब्द निःसृत होता है अतः उसे रसा कहा गया। नदी शब्दमें भी नद् अव्यक्ते शब्दे का योग है।४७ उपर्युक्त निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार रस् शब्दे धातुसे घञ् प्रत्यय कर रस ३ टापूरसा बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें रस जल के अर्थ में प्राप्त होता है जो रस् आस्वादने धातुके योगसे निष्पन्न होता है। नदीके अर्थमें पुनः रसेन जलेन युक्ता रसा ऐसा भी माना जा सकता है। ४७० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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