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है।७०
(३९) वात :- यह वायुका वाचक है। निरुक्तके अनुसार वातो वातीति सत:५८ यह शब्द वा गतिगन्धनयो: धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि वह गमन करती है या गति युक्त है। इसका ध्वन्यात्मक तथा अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार वा गतिगन्धनयो:+ तन् प्रत्यय कर वातः शब्द बनाया जा सकता है।७३
(४०) वेन :- यह नाभिस्थानस्थ समानवायका वाचक है। निरुक्तके अनुसार वेनो वेनते: कान्तिकर्मण:७४ यह शब्द कान्त्यर्थक वेन् धातुके योगसे निष्पन्न होता हैं। कान्ति इच्छार्थक है। क्योंकि यह समान वायु सबोंका इप्सित है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। यास्कके अनुसार वेन्+घञ् प्रत्यय है। व्याकरणके अनुसार अज् गतौ धातुसे न प्रत्यय कर अज् का वा७५ आदेश +न:७६ = वेन: बनाया जा सकता है।
(४१) जरायु :- यह गर्भाशयका वाचक है। निरुक्तके अनुसार १- जरायुर्जराया गर्भस्य २- जरया यूयत इतिवा७४ गर्भ की वृद्धि से इसमें भी वृद्धि होती है अथवा यह जरा (जेर नाभि सूत्र) से मिला रहता है। इस निर्वचन के अनुसार जरा+ यू मिश्रणे धातुके योग से यह शब्द निष्पन्न माना जायगा। प्रथम निर्वचनमें मात्र अर्थ स्पष्ट किया गया है। अन्तिम निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार-जरा+ इण् गतौ + ऋण प्रत्यय कर जरायः शब्द बनाया जा सकता है। जरामेति जरायः७७
(४२) शिशुः :- बच्चा। निरुक्तके अनुसार १- शिशुः शंसनीयो भवति ४ यह सबके द्वारा शंसनीय होता है। सब लोग इसे चाहते हैं। इसके अनुसार शिशु शब्दमें शंस स्तुतौ धातृका योग है। २- शिशीतेर्वा स्यादानकर्मण:७४ यह शब्द शिश दानकर्मा धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि इसे पत्नी को धारण करने के लिए प्रदान किया जाता है। प्रथम निर्वचनका अर्थात्मक महत्त्व है। द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।व्याकरणके अनुसार शो तनू करणे + उ:७९ या शश् प्लुतगतौ+ कुः प्रत्यय कर शिशुःशब्द बनाया जा सकता है।
(४३) रिहन्ति :- इसका अर्थ होता है- स्तुति करते हैं, बढ़ाते हैं, पूजा करते हैं। निरुक्त के अनुसार- रिहन्ति, लिहन्ति, स्तुवन्ति, वर्धयन्ति, पूजयन्तीतिवा७४ यह शब्द लिह स्तुतौ , वृद्धौ , पूजायाञ्च धातु के योग से
४५९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क