________________
चन्द्रमा ही है। व्याकरणाके अनुसार चन्द्र + मा + असुन् प्रत्यय कर चन्द्रमा शब्द बनाया जा सकता है। चन्द्रमा शब्दका अर्थ चमकला हुआ चन्द्र भी हो सकता है। निरुक्तके इस अध्यायमें चन्द्र शब्द प्रकाश या चमक के अर्थमें मी प्रयुक्त है। यास्क के चन्द्र +मा तथा चन्द्र+मान् के अन्तिम खण्ड मारोपीय परिवार की कुछ भाषाओं में श्ददह के रूपमें प्राप्त है।
(३) चन्द्र :- इसका अर्थ होता है. चन्द्रमा निरूक्त के अनुसार (१) चन्द्रश्चन्दतेः कान्तिकर्मणः चन्द्र शब्द कान्त्यर्थक चदि धानुकै योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि यह कान्ति सम्पन्न होता है। (२) चारुद्रमति यह सुन्दर गति करता है। इसके अनुसार चन्द्र में चारु+द्रम् यती धातुका योग है। चारू का च + द्रम् चन्द्रः(३) चिरंद्रमति यह अधिक समय तक गति करता है। इसके अनुसार चन्द्र शब्दमें चिस्च द्रम् यती धानुका योग है। (४) चम्मापूर्वरूपम् चन्द्र शब्दमें चमु अदने धातु पूर्व पदस्थ है चम् + द्रम् गौचन्द्रः। कृष्णपक्ष में सूर्य इसकी किरणोंका पान करते हैं। सूर्य से पीत चन्द्र गमन करता है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। अन्तिम निर्वचन ज्योतिष शास्त्रीय आधार स्खता है या ग्रहात्मक आधारसे युक्त है। शेष नियमों के मी अर्थात्मक महत्व हैं। व्याकरणके अनुसार चदि आजादने र प्रत्यय कर चन्द्रः शब्द बनाया जा सकता है।
(४) चन्दनम् :- श्रीखण्डा निरुक्तके अनुसार (१) चन्दतेः चन्दन शब्द कान्त्यर्थक चदि घालुके योगासै निष्पन्न होता है, क्योंकि यह कान्तिमान् होता है। (२) चारू द्रमति चन्दनका सुगन्ध सर्वत्र व्याप्त हो जाता है। इसके अनुसार चारू च*द्रम् धातुकै योगसे यह शब्द निष्पन्न माना जायगा। (३) चिरं द्रमति अधिक समय तक इसका सुगन्ध व्याप्त रहता है। इसके अनुसार चिस्चद्रम् धातुका योम इस शब्द में माना जायणा।। (8) च्यमै-पूर्वरूपम् चन्दन के पूर्व पदमें चमु अदने धातुका योग है, क्योंकि औषधिकै रूपमें इसे खाया जाता है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार प्रथम निर्वचनको उपयुक्त माना जायगा। शेषका मात्र अर्थात्मक महत्व है। व्याकरणके अनुसार चदि अह्लादने धातुस ल्युट् प्रत्यय कर चन्दनम् शब्द बनाया जा सकता
(५) चारू :- इसका अर्थ होता है सुन्दर। निरुक्तके अनुसास्चारू रूचे विपरीवस्य यह शब्द रूच दीप्तौ छातुको विपरीत कर बनाया जा सकता है-रूच-चरू चास्न बह दीप्तिम्मान होता है। निर्वचन प्रक्रिया के अनुसार इसे
४६५ व्युत्पति विज्ञान और आचार्य सास्क