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वाली उरूजला-उरूञ्जिला उरूञ्जिरा। पुत्र के मरण जन्य शोक से पीड़ित वशिष्ठ मरने की इच्छा से पाशमें बंध कर इस नदीमें डूब गये। लेकिन वे पाश इसके जलसे खुल गये।७६ अर्थात् इसने वशिष्ठ को पाश से मुक्त किया। इसके अनुसार इस शब्दमें वि + पश बन्धने धातका योग है- विपाश-विपाड़। (३) विप्रापणाद्वा४९ अर्थात् विविध स्थानोंकों इसने जल प्राप्त कराया। इसके अनुसार इस शब्दमें वि + प्र + आप प्रापणे धातुका योग है विप्राप्-विपाट्। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन ऐतिहासिक आधार रखता है। अंतिम निर्वचनमें ध्वन्यात्मकता का अभाव है। व्याकरणके अनुसार वि + पश् वन्धने धातुसे क्विप् प्रत्यय कर विपाश् विपाट् शब्द बनाया जा सकता है।७७ आजकल के पंजाब की व्यास नदी ही वैदिककालीन विपाट्थी।
(५४) सुषोमा :- सिन्धुको ही सुषोमा कहा गया है। निरुक्तके अनुसार सुषोमा सिन्धुर्यदेनामभि प्रसवन्ति नद्य:४९ अर्थात इस नदीमें बहत सी नदिया जाकर मिलती है।७८ इस निर्वचनके अनुसार इस शब्दमें स्- प्रसवैश्वर्ययो: धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।
(५५) आप :- इसका अर्थ होता है जल। निरुक्तके अनुसार आपः आप्नोते:४९ अर्थात् यह शब्द आप्लू व्याप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह सर्वत्र व्याप्त है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार आप् + अण् + आपः बनाया जा सकता है।०९
(५६) ओषधय :- इसका अर्थ होता है रोग निवारक दवाइयां। निरुक्तके अनुसार (१) ओषत् धयन्तीतिवा४९ अर्थात् शरीरस्थ रोग तापको यह समाप्त कर देती है। इसके अनुसार इस शब्दमें ओषत् (दाह को) + धेट पाने धातुका योग है। (२) ओषत्येना धयन्तीतिवा४९ अर्थात् शरीरमें दाह या ताप रहने पर इन दवाइयों को लोग पीते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें ओषति + धेट्पाने धातुका योग है। (३) दोषं धयन्तीति वा४९ अर्थात् यह त्रिदोर्षों (वात, पित, कफ) को नष्ट कर देती है। इसके अनुसार इस शब्दमें दोष + धेट् पाने धातुका योग है। प्रथम दो निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें उपयुक्त माना जायगा। अन्तिम निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। इसका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार ओष+ धा +कि: प्रत्यय कर ओषधि: ओषधयः शब्द बनाया जा सकता है।८०
४३९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क