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इसके अनुसार इस शब्दमें शु क्षिप्रका वाचक है तथा द्रु गतौ धातु है शु + द्रु-शुद्रिविणी= शुतुद्री।(२) आशु तुन्नेव द्रवतीतिवा४९ अर्थात् यह किसीसे बिद्ध सी होकर आघातित सी होकर भागती है तीव्रगति से बहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें आशु + तु +द्रु गतौ धातुका योग है। आशुका शु, तुन्न का तु तथा द्रु धातुसे शुतुद्री माना गया है। दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। ध्वन्यात्मकता पूर्ण संगत नहीं। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें पूर्ण संगत नहीं माना जायगा। प्रथम निर्वचन की अपेक्षा द्वितीय निर्वचनमें अधिक ध्वन्यात्मकता है। द्वितीय निर्वचन अक्षरात्मक निर्वचन है। व्याकरणके अनुसार शु + तुद् +र + इन्६७ प्रत्यय कर शुतुद्री शब्द बनाया जा सकता है। आज कल यह सतलज नदीके नामसे विख्यात है।
(४८) फ्रूष्णी :- यह एक नदी विशेषका नाम है। यह इरावतीके नामसे विख्यात है। निरुक्तके अनुसार इरावती परणीत्याहुः पर्ववती भास्वती कुटिलगामिनी४९ अर्थात् जो पर्ववाली है, प्रकाशित होने वाली है या कुटिलगामिनी है। इसके अनुसार पर्ववतीसे परूष्णी माना गया है। भास्वती एवं कुटिलगामिनी इसके स्वरूप को प्रकाशित करने वाले विशेषण है अर्थात्मक आधार सभी निर्वचनोंका संगत है। ध्वन्यात्मकता किसीमें भी पूर्ण नहीं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत नहीं माना जायगा। आज कल यह नदी रावीके नामसे विख्यात है। यह रावी शब्द इरावती से उद्भूत है।
(४९) असिक्नी :- यह एक नदी विशेषका नाम है। निरुक्तके अनुसार असिक्नयशुक्लासितासितमिति वर्ण नाम तत्प्रतिषेधोऽसितम्।४९ अर्थात् यह अशुक्ला है, असिता है। सित शुक्ल वर्ण का नाम है। उसका विपरीत असित से असिक्नी माना गया है। अशुक्लसे भी असिक्नी माना जा सकता है। इस नदीका जल नीला दीखता होगा। दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। असितासे असिक्नी मानना अशुक्ला से असिक्नी की अपेक्षा ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अधिक संगत है। व्याकरण के अनुसार न सिता शुक्ल केशा। छन्दसि क्नमेव इति तस्यवन्नान्तोत्वाडीप च इति असिक्नी माना जा सकता है।६८ न-अ-सित+क्नन + डीप।
(५०) मरूवृधा :- यह एक नदीका नाम है। मरूतोंसे बढ़ने वालीको मरूदवृधा कहेंगे। लगता है यह नदी, तूफान जनित वर्षासे बढ़ने घाली थी। निरुक्तके अनुसार मरूदवृधा : सर्वा नद्यो मरूत एना वर्धयन्ति।४९ अर्थात् हवा इन सभी को बढ़ाती है। इस मिर्वचन के अनुसार मरूत् + वृध वृद्धौ धातु के योग से मरूवृधाः शब्द निष्पन्न माना जायगा। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एव अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार यह सर्वथा संगत
४३७:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क