Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 393
________________ अग्निके तीन नामोंके निर्वचनमें यास्कने विविध आधारों को अपना कर प्रचुर प्रकाश डाला है।प्रत्येक शब्दके एक से अधिक निर्वचन किए गए हैं।इस अवसर पर अन्य मतोंको भी उपस्थापित किया गया है।लगता है कि यास्कके समय में निर्वचन शास्त्रके अन्य चिन्तक भी समादृत थे।दैवत काण्ड के इन नामों के द्वारा देवताओंकी स्तुति प्रधान रूपमें की जाती है।ज्ञातव्य है कि दैवतकाण्डमें देवताओं के नामही संकलित हैं। इस अध्याय के पदोंके निर्वचनमें यास्कने विभिन्न दृष्टियोंको अपनाया है। देवताओंके कार्य, स्वरूप, समानता आदि प्रमुख रूपसे सामने आते हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे पूर्णतः उपयुक्त निर्वचनों मे- सुविदत्रम्, मन्त्राः, छन्दः, स्तोमः, यजुः, साम, गायत्री, उष्णिक्, कुब्जः, अनुष्टुप् , वृहती, पंक्तिः , त्रिष्टुप्, जगती, विराड्, अग्निः, समनम, नसतिः,हर्यति, दिव्यः, गरुत्मान, जातवेदाः,दस्यः,जमदग्नयः, ऋग्मियम् , मातरिश्वा , घृतम् , मूर्धा , अदितयः शब्द परिगणित हैं। इन शब्दों के अनेक निर्वचनोंमें कुछ भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण भी हैं। ध्वन्यात्मक शैथिल्य-वाले पिपीलिका , अग्नि :, देवः, होता तथा वैश्वानरः, शब्द विशेष उल्लेखनीय हैं। इन शब्दों के भी कुछ निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण निर्वचनों में उष्णीषम्, ककुप्, विवस्वान् तथा मिथुन शब्दोंको देखा जा सकता है। उष्णिक एवं विराड् शब्दोंके निर्वचनमें यास्कने उपमाका सहारा लिया है। ककुम् शब्द सादृश्य पर आधारित है। दस्युः शब्दमें भी गुणसादृश्य पाया जाता है। त्रिष्टुप् एवं जगती शब्दोंके निर्वचन ऐतिहासिक महत्त्व से युक्त हैं। छन्दके विविध नामोंके निर्वधनमें यास्क उसके स्वरूप को विशेष रूपमें सामने लाते हैं। वैदिक छन्द अक्षरों की गणना पर आधारित है। इन अक्षरोंके द्वारा नियन्त्रित सभी छन्द स्वरूप विशेष से युक्त हैं। वे कमी-कभी छन्दों का ऐतिहासिक महत्त्व तथा आध्यात्मिक महत्त्व भी अपने निर्वचनों में उपस्थापित करते हैं। छन्द नामों के अतिरिक्त अन्य शब्दोंके निर्वचन देवताओं से प्रायः सम्बद्ध हैं। इस अध्यायके प्रत्येक निर्वचनोंका पृथक् मूल्यांकन द्रष्टव्य है : (१) सुविदत्रम्:-यह धनका वाचक है। निरुक्तके अनुसार सुविदत्रं धनं भवति विन्दतेर्वा एकोपसर्गात्१ अर्थात् एक उपसर्ग युक्त होकर विलृ लामे धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है-सु+विद्+ त्र-सुविदत्र ददातेर्वा स्यात् द्वयुपसर्गात्१ अर्थात् दो उपसर्गोसे युक्त दा दाने धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है-सु+वि+दा+त्र ३९६:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क

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