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कुल ५६ निर्वचन प्राप्त होते हैं जिनमें दैवत काण्ड पठित ३६ पद तथा शेष २० पद प्रसंगत : प्राप्त हैं।
निघण्टुके पंचम अध्यायके अन्तिम अर्थात् षष्ठ खण्डमें आश्विनौ आदि ३१ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके द्वादश अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके द्वादश अध्यायमें कुल निर्वचनोंकी संख्या ५१ हैं जिनमें ३१ पद दैवत काण्ड पठित हैं तथा शेष २० पद प्रसंगतः प्राप्त हैं।
निरुक्तके दैवत काण्डमें सप्तम, अष्टम, नवम, दशम, एकादश एवं द्वादश अध्याय हैं, इन काण्डों में देवताओं के नाम प्रधान रूपमें विवेचित हैं। देवताओंका स्थानानुसार विभाजन यहां प्राप्त होता है। कुछ देवता पृथ्वी स्थानीय है, कुछ अन्तरिक्ष स्थानीय तथा कुछ धुस्थानीय।।
यास्कने निरुक्तके द्वादश अध्यायके बाद त्रयोदश एवं चतुर्दश अध्यायोंमें कुछ मन्त्रोंके ईश्वर परक अर्थोंका प्रतिपादन किया है इन्हें अतिस्तुतियों के अन्तर्गत परिगणित किया जाता है। इस प्रसंग में प्राप्त पदोंका निर्वचन भी यास्क करते हैं। इस प्रकार निरुक्त्तके त्रयोदश अध्यायमें कुल सात तथा चतुर्दश अध्यायमें आठ पदोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं।
दैवत काण्डकी परिसमाप्ति निरुक्तके द्वादश अध्याय तक ही हो जाती है फिर भी त्रयोदश एवं चतुर्दश अध्यायके निर्वचन देवताओं से ही किसी न किसी रूपमें सम्बद्ध हैं। अत: इन अध्यायोंके निर्वचनोंको भी इसी प्रसंगमें प्रस्तुत किया गया। (क) निरुक्तके सप्तम अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन
निरुक्तके सप्तम अध्यायसे दैवत काण्डका आरम्भ होता है। निघण्टुका पंचम अध्याय दैवत काण्ड है। निघण्टुके पंचम अध्यायमें ६ खण्ड हैं वे क्रमशः निरुक्त के ७, ८, ९, १०, ११ एवं १२ अध्यायोंमें विवेचित हुए हैं।
निघण्ट्के पंचम अध्यायके प्रथम खण्डमें अग्निके तीन नामोंका उल्लेख हआ है- अग्निः, जातवेदा एवं वैश्वानर। निरुक्तका सप्तम अध्याय निर्वचनकी दृष्टिसे अग्निके इन्हीं तीनों नामोंका विवेचक है। यद्यपि इस अध्यायमें यास्क प्रतिपादित निर्वचनोंकी कुल संख्या ३७ है निघण्टु पठित दैवत काण्डके तीन नाम ही व्याख्यात हैं। इस प्रकार निरुक्तके इस अध्याय के ३४ निर्वचन प्रसंगतः प्राप्त हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे एवं निर्वचन प्रक्रियाके अनुसार सभी निर्वचन महत्त्वपूर्ण हैं।
३९५ :व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क