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यह पाप को डुबा देता है, समाप्त कर देता है अतः इसे मंगल कहते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें मस्ज शुद्धौ धातुका योग है। मस्ज+अलच्= मंगलम्। (५) मां गच्छत्विति वा अर्थात् मुझको प्राप्त हो ऐसा अर्थ होनेके कारण मंगल कहलाया। इसके अनुसार मां+ गम् धातुके योगसे इसको व्युत्पन्न माना जायगा। माम्+गम्+डलचुमंगलम्। अंतिम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। इसे भाषा विज्ञानके अनुसार संगत माना जायगा! शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। अंगलसे मंगल शब्द मानने में आदि व्यंजनागम माना जायगा। व्याकरणके अनुसार मंगि सपणे धातुसे अलच्१० प्रत्यय कर मंगलम् शब्द बनाया जा सकता है।
(४) गृत्समद :- यह एक ऋषिका नाम है। निरुक्त्तके अनुसार- गृत्समदो गृत्समदन:१ अर्थात् गृत्समदन ही गृत्समद कहलाता है। गृत्स इलिमेधावि नाम गृणाते: स्तुतिकर्मण:१ अर्थात् यह मेधावीका वाचक है क्योंकि यह शब्द स्तुत्यर्थक गृ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। जो व्यक्ति मेधावी एवं हर्षालु हो उसे गृत्समद कहा जायगा- गृत्सश्च असौ मदनश्चेति गृत्समदनः मृत्समदः। इस निर्वचनका आधार समास है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।
(५) मण्डूका :- इसका अर्थ होता है मेढक। निरुक्तके अनुसार- मण्डूका मज्जूका मज्जनात् अर्थात् मण्डूक मज्जूक (मेढक) को कहा जाता है क्योंकि ये पानीमें निमग्न रहते हैं। मस्ज् धातुके योगसे निष्पन्न मज्जूक शब्द ही मण्डूक बन गया। मज्जूकसे मण्डूकमें ज वर्ण का उ में परिवर्तन तथा अनुनासिकीकरण हआ है। (२) मदतेर्वा मोदतिकर्मण:१ अर्थात् मोद अर्थ वाले मदी धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न हुआ है,क्योंकि वह सदा आनन्दित रहता है-१२ मदीहर्षे-मद् + ऊकण११ =मण्डूका (३) मन्दतेर्वा तृप्तिकर्मण: अर्थात् यह शब्द तृप्त्यर्थक मन्द धातुके योगसे निष्पन्न होता है मन्द- मण्ड + ऊकण = मण्डूकः। मण्डूक जलमें निमग्न रहने पर तृप्त रहता है सन्तुष्ट रहता है।१३ (४) मण्डयतेरिति वैयाकरणा:१ अर्थात् वैयाकरण इसे मडि भूषायां हर्षे च धातुसे निष्पन्न मानते है- मड़ +ऊकञ्१४ =मण्डकः। यह वर्षा कालका भूषण है या वर्षाकालको विभूषित करता है। दुर्गाचार्यका कहना है कि वे अनेक चित्रोंसे विभूषित होते हैं।१५ मण्ड एषामोकः इति वा' अर्थात् इसका ओक (निवास स्थान) मण्ड- (जल) होता है फलत: मण्ड+ओक से मण्डूक माना गया। प्रथम तीन निर्वचन ध्वन्यात्मक औदासिन्यसे युक्त हैं। अर्थात्मक आधार इनका संगत है। चतुर्थ निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरण के अनुसार मण्ड् + ४२४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क