________________
(१) वारि :- यह जलका वाचक है। निरुक्त्तके अनुसार पारि पारयति अथात यह प्यास वारण करता है जल प्यास बुझाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें वृ आवरणे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार वृ+णिच् +इर प्रत्यय कर वारि शब्द बनाया जा सकता है। आंग्ल भाषाका Water शब्द वारि का ही विकसित रूप है।
(२) शकुनि :- इसका अर्थ पक्षी होता है। निरुक्तके अनुसार- शक्नोत्युन्नेतु मात्मानम्१ अर्थात् वह अपने को ऊपर ले जानेमें समर्थ है। इसके अनुसार इस शब्दमें शक शक्ती एवं नी धातुका योग है। (२) शक्नोति नदितमितिवा१ अर्थात् वह अव्यक्त शब्द करनेमें समर्थ है। इसके अनुसार भी इस शब्दमें शक् एवं नद् धातुका योग है। (३) शक्नोति तकिंतुमिति वा' अर्थात् वह गमन करने में समर्थ है। इसके अनुसार भी इस शब्दमें शक् धातुका ही योग है। (४) सर्वतः शंकरोऽस्त्विति वा' अर्थात् यह सभी ओरसे कल्याण करने वाली है ऐसी संभावना की जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें शम्+ कृ धातुका योग है शंकरसे ही शकुनि माना गया है। (५)शक्नोंते अर्थात् वह सामर्थ्ययुक्त है। इसके अनुसार भी इस शब्दमें शक् धातुका योग है। उपर्युक्त निर्वचनोंमें चतुर्थ के अतिरिक्त सभीमें शक् धातुका योग है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे चारों उपयुक्त हैं। चतुर्थ निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। डा. वर्मा भी शकुनि शब्दके निर्वचनको भाषा विज्ञानके अनुकूल मानते हैं। चतुर्थ निर्वचनको छोड़ कर सभी निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार संगत है। चतुर्थ निर्वचनका सांस्कृतिक आधार है। पक्षियोंसे शुभाशुभ शकुनका संकेत ज्योतिष शास्त्र सम्बद्ध है। शकुन (निमित्त) सूचक होनेके कारण शकुनि कहलाया। व्याकरणके अनुसार शक्तृशक्तौ धातुसे उनि प्रत्यय कर शकुनि शब्द बनाया जा सकता है।
(३) मंगलम् :- यह कल्याण वाचक शब्द है। निरुक्तके अनुसार (१) मंगलं गिरतेर्गुणात्यर्थे अर्थात् यह शब्द गृणात्यर्थक गृ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह स्तुति सम्बद्ध है।मं+गृ गर-गल मंगलम्। (२) गिरत्यनानितिवा' अर्थात् यह शब्द गृ निगरणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह अनर्थों को निगल जाता है। मं+गृ-गर-गल मंगलम्। (३) अंगलमंगवत् अर्थात अंग से युक्त अंग । र (मत्वर्थीय)= अंगर। रको ल कर · अंगला अंगल के आद्यक्षर अ को म में परिणत कर मंगल शब्द बनाया गया। दधि, अक्षत, मधु आदिको अंग माना गया है। ये सभी मंगलके अंग हैं अत: अंग-अंगर अंगल-मंगल। (४) मज्जयति पापकमिति नैरुक्ता' अर्थात् निरुक्त सम्प्रदाय के अनुसार
४२३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क