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निरुक्तके अनुसार मुओ विमुच्यत इपीकया अर्थात् इशीकया सीकसे यह निकला रहता है। या अलग हो जाता है। फलतः यह मुअ कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें मुच् मोक्षणे धातुका योग है। मुच् धातुसे मुअ शब्द मानने पर ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत प्रतीत होता है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार मुंज+अच् प्रत्यय कर मुअ शब्द बनाया जा सकता है। यज्ञोपवीत संस्कारमें मुंजकी मेखलाका प्रथम उपयोग शास्त्र विहित है।२१
(११) इसीका :- इसका अर्थ सींक होता है। निरुक्तके अनुसारइपीकेसतेर्गतिकर्मण: अर्थात् इपीका शब्द गत्यर्थक इष् धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह मुञ्ज से निकली होती है। इयमपीतरेषीकेतस्मादेव अर्थात् वाण हलीषा आदि आर्थों वाली इपीका भी इसी प्रकार निष्पन्न होगी। यहां सादृश्य ही आधार है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इष् गतौ+इकन् प्रत्यय कर इसीका शब्द बनाया जा सकता है।
(१२) विमीदक :- यह बहेड़ाका वाचक है। निरुक्त्तके अनुसार विभीदको विमेदनात् अर्थात् यह शब्द विभिद् विदारणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। विमेदन अर्थात् कोष्ट शुद्धिके कारण इसे विभीदक कहा जाता है या इसे भेदन किया जाता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगााव्याकरणके अनुसार वि + भी+क्त भीत-इवार्थे कन् = विमीतकःशब्द बनायाजा सकता है।२२(विशेषेण भीतइव) विभीदकके बीजका प्रयोग वैदिककालमें जुआ खेलमें अक्षके रूपमें होता था।२२
(१३) जागृवि:- इसका अर्थ होता है जगाने वाला। निरुक्तके अनुसार जागृवि:जागरणात् अर्थात् जागरण करनेके कारण जागृविःशब्द बना। इसके अनुसार इस शब्दमें जागृजागरणे धातुका योग है।इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है।भाषाविज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।
(१४) ग्रावाण :- यह शिला का वाचक है। ग्रावन् शब्द का बहबचनान्त ग्रावाणः होता है। निरुक्तके अनुसार ग्रावाणोहन्तेर्वा अर्थात ग्रावाण: शब्द हन्धातु के योग से निष्पन्न होता है क्योंकि इससे आघात किया जाता है। हन् धातुका ग्र आदेश कर ग्र-क्वनिप् =ग्रावन्-ग्रावा-ग्रावाणः। (२) गृणातेर्वा अर्थात् यह शब्द गृ शब्दे धातुके योगसे निष्पन्न होता है गृ+वनिप्-ग्रावन्- ग्रावा-ग्रावाणः। पत्थर परस्पर संघर्षसे शब्द करते हैं। (३) गृहणातेर्वा अर्थात् इस शब्दमें ग्रह उपादाने धातु का योग है ग्रह+वनिप्- ग्रावन्-ग्रांवा-ग्रावाणः। इसे लोग ग्रहण किए रहते हैं। प्रथम एवं तृतीय निर्वचन ध्वन्यात्मक औदासिन्य से ४२६:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क