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अष्टम अध्याय दैवत काण्डके निर्वचनोका समीक्षण
निघण्ट्र के पंचम अध्याय को दैवत काण्ड कहा जाता है। दैवत काण्ड छ खण्डों में विभाजित है जिनमें क्रमश: ३, १३, ३६, ३२, ३६ तथा ३१ पद संकलित हैं। इन पदोंकी व्याख्या निरुक्तके क्रमशः सप्तम, अष्टम, नवम, दशम, एकादश तथा द्वादश अध्यायोंमें हुई है। ___निघण्टुके पंचम अध्यायके प्रथम खण्डमें मात्र अग्निसे सम्बद्ध ३ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके सप्तम अध्यायमें हुई है। यद्यपि निरुक्तके सप्तम अध्यायके निर्वचनोंकी कुल संख्या ३७ हैं जिनमें तीन दैवत पठित हैं तथा शेष ३४ प्रसंगतः प्राप्त हैं।
निघण्टुके पंचम अध्यायके द्वितीय खण्डमें द्रविणोदा आदि १३ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके अष्टम अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके अष्टम अध्यायमें कुल २९ निर्वचन प्राप्त होते हैं जिनमें १३ दैवतकाण्ड पठित हैं शेष १६ निर्वचन प्रसंगतः प्राप्त हैं।
निघण्टुके पंचम अध्यायमें तृतीय खण्डमें अश्व आदि ३६ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके नवम अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके नवम अध्यायमें प्राप्त कुल निर्वचनोंकी संख्या ७६ हैं जिनमें ३६ दैवत काण्ड पठित तथा शेष ४० प्रसंगत: प्राप्त हैं।
निघण्टुके पंचम अध्यायके तृतीय खण्डमें अश्व आदि ३६ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके नवम अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके नवम अध्यायमें प्राप्त कुल निर्वचनोंकी संख्या ७६ है जिनमें ३६ दैवत काण्ड पठित तथा शेष ४० प्रसंगतः प्राप्त हैं।
निघण्टुके पंचम अध्यायके चतुर्थ खण्डमें वायु आदि २२ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके दशम अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके दशम अध्यायमें कुल निर्वचनोंकी संख्या ५७ है जिनमें ३२ दैवत काण्ड पठित हैं तथा शेष २५ पद प्रसंगतः प्राप्त हैं।
निघण्टु के पंचम अध्यायके पंचम खण्डमें श्येन आदि ३६ पद संकलित हैं जिनकी व्याख्या निरुक्तके एकादश अध्यायमें की गयी है। निरुक्तके एकादश अध्यायमें
३९४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क