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है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकरणके अनुसार - मातरि अन्तरिक्षे श्वयति संचरतीति मातरिश्वा - मातरि+श्वि गति वृद्धयो से निपातनके द्वारा मातरिश्वा की सिद्धि की जा सकती है।६१
(३५) मूर्धाः- यह मस्तकका वाचक है।६२ निरुक्तके अनुसार - मूर्तमस्मिन्धीयतेप९ अर्थात् इसमें शरीर धारण किया जाता है। इस उतमांगके सहारे ही शरीर अवस्थित है। इसके अनुसार मूर्धा में मूर्त +धा धातुका योग है मूर्त मुर्छ मोहसमुच्छाययोःधातुसे क्त प्रत्यय करने पर निष्पन्न हो जाता है तथा धा धारणार्थक धातु है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। मूर्त + धा=मूर्धा में मध्यम वर्ण लोप हो गया है जो निर्वचन प्रक्रियाके अनुरूप है। व्याकरणके अनुसार मुह वैचित्ये धातुसे कन् प्रत्यय कर मूर्धा शब्द बनाया जा सकता है।६३
(३६) आदितेय :- इसका अर्थ होता है सूर्य। निरुक्तके अनुसार - आदितेयम् अदितेः पत्रम५९ अर्थात् अदितिके पत्रको आदितेय कहा जाता है। यह तद्धितान्त शब्द है। इसका आधार ऐतिहासिक है।६४ ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यह उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे संगत माना जायगा। अदिति + ढक् - ऐय =आदितेयमें भाषा विज्ञान की दृष्टिसे अपश्रुति मानी जायगी। व्याकरणके अनुसार अदिति + ढक् प्रत्यय कर आदितेय शब्द बनाया जा सकता है।६५
-(३७) मिथुनौ :- यह युगल या युग्मका वाचक है। निरुक्त के अनुसार मिनोतिः श्रयतिकर्मा थु इति नामकरणः थकारो वा नयति परः वनिर्वा५९ अर्थात् यह
शब्द आश्रय ग्रहण करना अर्थ वाले मि धातुसे थु या थ प्रत्यय कर बनाया जाता है जिसके उतर पद में नी या वन् धातुका योग है (१) मि+ थु नी - न = मिथुन। (२) मि+ थ + वन - उन् (सम्प्रसारण)= मिथुन समाश्रितावन्योन्यं नयतः वनु तो वा५९ अर्थात् मिथुन युगल आश्रित होकर एक दूसरे को ले चलते है ये आपस में मिले रहते हैं। प्रथम अर्थ नी प्रापणे धातु के योग का परिणाम है। (मि+ थु + नी= मिथुन) द्वितीय अर्थ वन् शब्दे सम्भक्तौ च धातु के योगका परिणाम है (मि + थ + वन् उन् = मिथुन)। मनुष्य मिथुनावप्येतस्मादेव। मथन्तावन्योन्यं वनुत इति वा५९ अर्थात् मनुष्य का मिथुन शब्द भी इन्हीं निर्वचनों से बनता है क्योंकि वे एक दूसरे से मिलते है तथा एक दूसरे को आदर करते हैं। इस प्रकार मनुष्य जोड़ा वाचक मिथुन शब्द मिथ् मेधाहिंसयोः तथा वन शब्दे सम्भक्तौ च धातुओं के योग से निष्पन्न होता है मिथ् + वन् - उन्= मिथुन। यह निर्वचन अस्पष्ट है इसका
४०७:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क