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भी होती है- आप्रीभिराप्रीणाति इति च ब्राह्मणम् अर्थात् आप्री ऋचाओं से आनन्दित करता है।३ इन ऋचाओं से सम्बद्ध होने के कारण देवता लोग भी आप्री कहलाते हैं।२४ यास्कका द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। प्रथम निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकरणके अनुसार आ+ प्री + उ + डीष् आप्री - आप्रियः शब्द बनाया जा सकता है।२५
(७) इध्म :- इसका अर्थ होता है अग्नि या इन्धन। निरुक्तके अनुसारतासामिध्मः प्रथमगामी भवति, इध्मः समिन्धनात्२२ आप्री देवताओंमें प्रथम गामी इध्म हैं। जलने या प्रदीप्त होने के कारण इध्म कहा जाता है। अग्नि तथा इन्धन दोनों में उपर्युक्त गुण पाये जाते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें इन्ध् दीप्तौ धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। यह धातुज सिद्धान्त पर आधारित है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। आचार्य कात्यक्यने इध्मको यज्ञ माना है- यज्ञेघ्म इतिकात्यक्य:२२। आचार्य शाकणि ने इघ्म को अग्नि कहा है- अग्निरिति शाकपूणिः।२२ लौकिक संस्कृत में इध्म शब्दका प्रयोग इन्धनके अर्थमें होता है।२६ व्याकरणके अनुसार इन्धी दीप्तौ धातुसे मक् प्रत्यय कर इध्म शब्द बनाया जा सकता है।२७
(८) तनूनपात् :- इसका अर्थ घृत एवं अग्नि होता है। आचार्य कात्यक्य इसका अर्थ घृत करते हैं- तनूनपादाज्यमिति कात्यक्यः इसके अनुसार तनूनपात् शब्द में तनू +नपात् दो पद खण्ड हैं। नपात् पौत्र या नाती का वाचक है। नपादित्यननन्तराया: प्रजाया नामधेयं निर्णततमा भवंति२२ अर्थात् पिता की अनन्तर सन्तान पुत्र तथा अननन्तर पौत्र होती है। यह नततम होता है। पितासे नत पुत्र तथा पुत्रसे नत पौत्र नततम हुआ। तनू गौ का वाचक है- गौरत्र तनूरूच्यते। तता अस्यां मोगा:२२ अर्थात् गाय में भोग वस्तुएं च्याप्त रहती हैं। तनू+नपात का अर्थ हआ गाय का पौत्रा तस्याः पयो जायते पयसः आज्यं जायते२१ अर्थात् गायसे दुग्ध उत्पन्न होता है यह गायका पुत्र हुआ तथा दूध से घृत उत्पन्न होता है यह घृत उसका पौत्र या नपात हआ। आचार्य शाकपूणि तनूनपात् का अर्थ अग्नि करते हैंअग्निरिति शाकपूणिः।२२ आपोऽत्र तन्व उच्यते। तता अन्तरिक्षे ताभ्य औषधिवनस्पतयो जायन्त औषधि वनस्पतिभ्य एष जायते२२ अर्थात् तनू मेघ जलका वाचक है क्योंकि यह अन्तरिक्ष में फैला रहता है। इससे ओषधि एवं वनस्पतियां उत्पन्न होती है। यह उसकी पुत्री हुई तथा वनस्पतियों से अग्नि उत्पन्न होती है यह वनस्पतियों की पुत्री, मेघ जल की पौत्री नपात् हुई।२८ तनूनपात् सामासिक शब्द है तन्वा:नपात्= तनूनपात्।इस निर्वचनका अर्थात्मक महत्त्व है। इस निर्वचनमें यास्क अपना अभिमत
४१३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क