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प्राय: नहीं देखा जाता । मोनियार विलियम्स महोदय इसका अर्थ करते हैं धक्का या प्रहार। ग्रास-मैन के अनुसार इसका अर्थ होता कूच करना, दौड़, आगे दबाव देना, ढकेलना। १०१
(१२७) बर्हणा :- इसका अर्थ है बढ़ा हुआ या परिहिंसा । निरुक्तके अनुसार बर्हणा परिवर्हणा८७ अर्थात् यह शब्द वृद्धयर्थक वृह या वर्ह हिंसायाम् धातु के योगसे निष्पन्न होता है।१०२ वृह + ल्युट् = बर्हण-बर्हणा, बर्ह + ल्युट्-वर्हण, वर्हणा। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । ग्रासमैन इसका अर्थ शक्ति या बल करते हैं। मोनियार विलियम्स इसका अर्थ फाड़ना या खींचना करते हैं । १०३
(१२८) सतनुष्टि :- इसका अर्थ है विस्तार चाहने वाला या भोगमें लगा रहने वाला । निरुक्तके अनुसार ततनुष्टि धर्म सन्तानादपेतम् अलंकरिष्णुमयज्वानं ८७ अर्थात् जो मनुष्य धर्म सन्तान अर्थात् अग्निहोत्रादिसे पृथक् होकर केवल भोगमें ही लगा रहता है। इसके अनुसार तनु विस्तारे धातु से ततन् + वश् कान्तौ धातुसे उष्टि ततन् + उष्टिः ततनुष्टिः या तन् +सन् +क्तिच् - तितनिष्टिः ततनुष्टिः शब्द माना जा सकता है। तन् एवं वश् कान्तौ धातुसे निष्पन्न मानने में ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त होता है। व का उ सम्प्रसारण से हुआ है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जायगा ।
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(१२९) घ्रंस :- यह दिन का वाचक है। निरुक्तके अनुसार - घंस इत्यहर्नाम ग्रस्यन्तेऽस्मिन् रसाः८७ अर्थात् इसमें रस-जल सोख लिए जाते हैं। दिनमें सूर्य तापसे जल (रस) सोख लिए जाते हैं । १०४ इसके अनुसार इस शब्दमें ग्रस् धातुका योग है। ग्रस् धातुसे ग का घ होकर घंस शब्द बना है। यहां वर्णका महाप्राणीकरण हुआ है। ग्रका प्राचीन रूप घ्र है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरण के अनुसार ग्रस् आधारे घातुसे घञ् १०५ प्रत्यय कर घंसः शब्द बनाया जा सकता है।
(१३०) ऊधस् :-यह(गाय का ) थन एवं रात्रिका वाचक है। निरुक्तके अनुसार १-गोरूध उद्धततरं भवति८७ अर्थात् यह गाय का थन कुछ उमरा होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें उत् + हन् धातुका योग है। उत+हन् - उद्धत - ऊधस् । २- उपोनद्धमिति वा८७ अर्थात् यह पेटसे सटा होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें उत् + नह् बन्धने
३७० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क