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धातुका योग है-उत् + नह् = ऊधस् । स्नेहानुप्रदान सामान्यात् रात्रिरप्यूधः उच्यते ८७ अर्थात् (स्नेह) दूध- (रस) ओस दान रूप समानता के कारण रात्रिको भी ऊधः कहा जाता है। गायके समान ही रात्रि भी ओसका वर्षण करती है। गाय के थन अर्थमें ऊधस् शब्द का प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। रात्रिके अर्थ में ऊधस् प्रयोग सादृश्य आधार रखता है। उक्त अर्थ में इसकी ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक संगति उपयुक्त नहीं है। गायके थन के लिए भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में भी किंचित् ध्वन्यन्तर के साथ यह शब्द उपलब्ध होता है- लैटिन Uder अंग्रेजी Udder आयरिश Ult जर्मनी Cuter १०६ लौकिक संस्कृत में ऊधस् का प्रयोग . थनके लिए ही होता है । व्याकरणके अनुसार उन्दी क्लेदने धातुसे असुन् प्रत्यय कर ऊधस् शब्द बनाया जा सकता है | १०७
(१३१) इलीविश :- इसका अर्थ होता है बादल । निरुक्त के अनुसार इली विश इलाविलशयः८७ अर्थात् पृथ्वी के बिलमें शयनकरने वाला। जल वर्षाके रूपमें पृथ्वीके खातोंमें संग्रह होता है । १०८ इसके अनुसार इला + बिल + शीङ् शयने धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है-बिले शेते इति बिलेशय : बिलशयः । वर्णलोप होकर विश: -इला +विशः इलाविश: वर्ण परिवर्तनसे इलीविश: । इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। अर्थात्मक आधार इसका संगत है। व्याकरणके अनुसार इल Ł विल. इलीवि+ शयः शः इलीविशः या इल् + क:= इल: +डीष् = इली+ विश: - इलीविश: शब्द बनाया जा सकता है।
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(१३२) कियेधा :- इसका अर्थ होता है- बहुत धारण करने वाला, मेघ। निरुक्तके अनुसार १- कियेधाः कियद्धा इतिवा८७ अर्थात् अत्यधिक (जल) धारण करने वाला।१०९ इसके अनुसार इस शब्द में कियत् + धा धारणे धातुका योग है - कियत् + धा= कियेधा। २ - क्रममाण धा इति वा८७ अर्थात् क्रमण करते हुए धारण करने वाला। इसके अनुसार इस शब्दमें क्रम् + धा धारणे धातुका योग है- क्रम + धा
- कियेधा । प्रथम निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा
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विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । द्वितीय निर्वचनका मात्र अर्थात्मक महत्त्व है | कियेधाका आचार्य स्कन्द इन्द्र विशेषण मानते हैं। 990 लौकिक संस्कृतमें इस शब्दका प्रयोग उक्त अर्थमें प्राय: नहीं देखा जाता।
३७१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क