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निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखता है। व्याकरणके अनुसार मद् + स्यन् = मत्स्यः शब्द बनाया जा सकता है।१३५ ।
(१६९) अभिधेतन :- इसका अर्थ होता है हमारी ओर तेजी से आओ। निरुक्तमें- अभिधेतन- शब्द अभिधावत कहकर स्पष्ट किया गया है।१२५ इसके अनुसार अभिधेतन शब्दमें अभि+ धाव धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। अर्थात्मक संगति ही इस निर्वचनका प्रयोजन है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत नहीं माना जायगा।
(१७०) जालम् :- यह पाश (जाल) मछली आदि पकड़ने के फन्दा का वाचक है। निरुक्तके अनुसार- १- जालं जलचरं भवति१२५ अर्थात् यह जलमें चलने वाला होता है। जल स्थित मछलियोंको पकड़नेके लिए जलमें डाल दिया जाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें जल + चरणार्थ में अण् का योग है। २- जलेभवं वा१२५ अर्थात् यह जलमें होता है या जल में रहता है। इसके अनुसार इसमें जलन होना अर्थमें अण् जालम् है ३- जलेशयं वा१२५ अर्थात् यह जलमें शयन करने वाला होता है। इसके अनुसार भी इस शब्दमें जल +शयन अर्थमें अण् प्रत्यय का योग है। इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार जल संवरणे धातुसे करणे घञ् प्रत्यय कर या जल् धातुसे अण् प्रत्यय कर जालम् शब्द बनाया जा सकता है|१३६
(१७१) अंहुर :- इसका अर्थ होता है- पापी। निरुक्तके अनुसार-अंहुरः अहंस्वान अहूंरणमित्यप्यस्य भवति१२५ अर्थात् अंहुर का अंहस्वान एवं अंहूरण पर्याय है। इस शब्दमें र मत्वीय प्रत्यय है। अंह + र = अंहरः। सातमर्यादाओं में एक को भी प्राप्त करना अंहुर कहलाता है१३७ अर्थात् सात मर्यादाओंमें एक को भी प्राप्त करने वाला पापी कहलाता है। वे सप्त मर्यादायें हैं चोरी, परस्त्री गमन, ब्रह्महत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्कृत कर्म को पुनः पुनः करना तथा पाप कर उसे छिपाने के लिए झूठ बोलना।१३८ यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार अहि। उरच् प्रत्यय कर अंहर शब्द बनाया जा सकता है।
(१७२) बत:-यह एक निपात है जो खेद एवं अनुकम्पाके अर्थ में प्रयुक्त होता
३८१:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क