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(१९७) आणि :- इसका अर्थ होता है- रथ चक्रदण्ड। निरुक्तके अनुसार आणि : अरणात्१४४ अर्थात् यह शब्द अर् गतौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह गमन करता है या गतिशील होता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। अर्थात्मक आधार इसका संगत है। व्याकरणके अनुसार अण् धातुसे इण प्रत्यय कर आणि: शब्द बनाया जा सकता है।
(१९८) शाखा :- यह अवयव, डाल आदिका वाचक है। निरुक्तके अनुसार शाखा शक्नोते:१४४ अर्थात् यह शब्द शक् शक्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। पेड़की शाखा एवं व्यक्तिकी शाखामें सादृश्यका आधार है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार यह -शाह अच् टाप कर बनाया जा सकता है।
(१९९) बुन्द :- इसका अर्थ होता है वाण। निरुक्तके अनुसार बुन्दः इषुर्भवति। बुन्दो वा भिन्दो वा१४४ अर्थात् यह शब्द भिद् विदारणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है भिद् + घञ् भिन्दः-बुन्दः क्योंकि यह मेदन करता है। २- भयदो वा अर्थात् यह वाण भय देने वाला होता है। इसके अनुसार भयद शब्द ही बुन्द बन गया है- भयदबुन्द। ३- भासमानो द्रवतीतिवा अर्थात् इसमें भास् + द्रु गतौ धातुका योग है भास् + द्रु-बुन्दः क्योंकि यह चमकता हुआ गति करता है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे अधिक संगत है। शेषके अर्थात्मक महत्त्व हैं। भ वर्ण का ब में परिवर्तन अल्प प्राणीकरण है।
(२००) ऋदूपे :- इसके अनेक अर्थ होते है- निरुक्तके अनुसार १. ऋदूपे अर्दन- यातिनौ१४४ अर्थात् गतिके साथ शत्रुओं को मारने वाले। इसके अनुसार इस शब्दमें गतौ+ पत् धातुका योग है। २. गमन पातिनौ अर्थात् गमनपूर्वक मार गिराने वाले। ३- शब्द पातिनौ अर्थात् शब्दसे ही मार गिराने वाले। ४. दूरपातिनौवा अर्थात् दूरसे मार गिराने वाले। ५- मर्मण्यर्दन वेधिनौ अर्थात् मर्मस्थल को गतिपूर्वक भेदन करने वाले। ६- गमनवेधिनी१४४ अर्थात् गमनपूर्वक भेदन करने वाले। यास्कका प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है।
(२०१) वृन्दम् :- इसकी व्याख्या बुन्द शब्द से ही मानी गयी है। (२०२) कि :- इसका अर्थ होता है कर्ता। निरुक्तके अनुसार किः कर्ता१४४
३८९ :व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क