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आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।
(१९१) दन :- इसका अर्थ होता है दानशील मनवाला। निरुक्तके अनुसारदनः दानमनस:१४४ अर्थात् दानमनसः का ही संक्षिप्त रूप दनः है। दान का द तथा मनसः से न लेकर दनः माना गया है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त नहीं माना जायगा। इसमें अर्थात्मकता उपयुक्त है। उक्त अर्थमें इस शब्दका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें प्रायः नहीं देखा जाता।
(१९२) शरारू :- इसका अर्थ होता है मारने की इच्छा रखने वाला। निरुक्त के अनुसार-शरारु: संशिशरिषु:१४४ अर्थात् हिंसका। इसके अनुसार इस शब्दमें शृ हिंसायां धातुका योग है। यास्कने इस शब्दका मात्र अर्थ ही प्रतिपादित किया है। निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त निर्वचन नहीं माना जायगा। उक्त अर्थमें इसका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें प्रायः नहीं देखा जाता।
(१९३) इदंयुः- इसका अर्थ होता है इसकी अभिलाषा करने वाला। निरुक्तके अनुसार-इदंयुः इदं कामयमान:१४४ अर्थात् इसकी इच्छा करने वाला।अथापि तद्वदर्थे भाष्यते इदम् शब्दसे इच्छार्थक यु प्रत्यय लगा कर इदम् + युः इदंयुः शब्द बनता है। यु प्रत्ययसे निष्पन्न अन्य शब्द भी निरुक्तमें प्राप्त होते हैं। अध्वर्यु:१४९ वसूयुः१५० आदि शब्द यु प्रत्ययके योगसे ही निष्पन्न है। यु मत्वर्थीय प्रत्यय हैं। इस प्रकार इसका अर्थ होगा इदंवान्। मत्वर्थीय यु प्रत्ययके अन्य उदाहरण ऋग्वेद में भी देखे जा सकते हैं- अश्वयुर्गव्यूरधर्युवसूयुः१५१ इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। यास्कने इदंयु शब्दमें युः दो अर्थों में माना है- १- कामयमान तथा २. तद्वान् यु प्रत्यय कालान्तर में तद्वान् अर्थमें ही सीमित हो गया है। पाणिनि ने तद्वान् के अर्थमें ही युः का विधान किया है।१५२ इससे स्पष्ट पता चलता है कि इस प्रत्यय में अर्थसंकोच हुआ है।
(१९४) कीकटा :- यह एक प्रदेश विशेषका वाचक है। निरुक्तमें इसे अनार्य निवास का देश कहा गया है- कीकटो नाम देशोऽनार्य निवास:१४४ इस निर्वचन में यास्क का कहना है-१- कीकटाः किं कृता:१४४ अर्थात् यहां के निवासी कुत्सित कर्म करने वाले हैं या धर्मादि कार्य किसलिए है ऐसा प्रश्न करते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें किम् + कृता:का योग है -किम् +कृता: कीकटाः।२-किं क्रियाभिरिति प्रेप्सा वा अर्थात् उत्तम क्रियाओं से क्या लाभ ऐसी जिनकी प्रेप्सा(मान्यता है उस देश विशेष को
३८७ :व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क